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[11] प्रथम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
रमए पण्डिए सासं, हयं भद्दं व वाहए। बाल सम्मइ सासन्तो, गलियस्सं व वाहए ॥ ३७ ॥
जिस प्रकार वाहक (अश्व-शिक्षक) अच्छे घोड़े को हाँकता हुआ सुखी होता है और अड़ियल अश्व को हाँकता हुआ दुःखी होता है । उसी प्रकार गुरुजन बुद्धिमान विनीत शिष्य को शिक्षा देते हुए प्रसन्न होते हैं तथा मूर्ख अविनीत शिष्य को शिक्षा देते हुये खिन्न होते हैं ॥ ३७ ॥ (चित्र देखें)
As a rider is happy riding a well trained horse and disgusted riding a stubborn horse, in the same way seniors and teachers are delighted while teaching a humble and intelligent disciple and are disturbed when teaching a foolish and immodest pupil. (37)
'खड्डुया मे चवेडा मे, अक्कोसा य वहा य मे' । कल्लाणमणुसासन्तो, पावदिट्ठित्ति मन्नई ॥ ३८ ॥
पाप दृष्टि वाला शिष्य गुरुजनों के कल्याणकारी शिक्षा शब्दों-वचनों को इस प्रकार मानता है, जैसे -ये मुझे ठोकर मारते हैं, चाँटा मारते हैं, गाली देते हैं, अपशब्द बोलते हैं, मारते-पीटते हैं- मुझे कष्ट देते हैं ॥ ३८ ॥
A disciple with sinful mindset finds the instructive commands of his teachers as if they are ‘kicking him, slapping him, abusing him, rebuking him, beating him or hurting him'. ( 38 )
'पुत्तो मे भाय नाइ' त्ति, साहू कल्लाण मन्नई ।
पावदिट्ठी उ अप्पाणं, सासं 'दासं व' मन्नई ॥ ३९ ॥
विनीत शिष्य (गुरुजनों के अनुशासन को ) यह सोचकर स्वीकार करता है कि ये मुझे अपना पुत्र, भाई, आत्मीय समझकर कल्याणकारी शिक्षा देते हैं; जबकि पाप दृष्टि वाला अविनीत शिष्य हित - शिक्षा से शासित होने पर स्वयं को 'दास' के समान हीन मानता है ॥ ३९ ॥
A humble disciple accepts the discipline imposed by gurus with the view that 'He is giving me instruction for my benefit considering me to be like his son, brother or close relative, whereas a disciple with sinful mindset when disciplined for his benefit finds himself lowly like a slave. (39)
न कोवए आयरियं, अप्पाणं पि न कोवए । बुद्धोवघाई नसिया, न सिया तोत्तगवेसए ॥ ४० ॥
विनीत शिष्य का कर्त्तव्य है कि वह गुरु को कुपित न करे और न स्वयं ही क्रोधित हो; वह गुरु के मन को क्षोभ पहुँचाने वाली (उपघात) चेष्टा न करे और न उनका छिद्रान्वेषण करता रहे ॥ ४० ॥
It is the duty of a humble disciple that he should neither make his guru angry nor get angry himself. He should shun any activity that causes anguish to the guru. He should also not be captious towards his guru and keep on finding faults. (40)
पत्तिएण
पसायए ।
आयरिय कुवियं नच्चा, विज्झवेज्ज पंजलिउडो, वएज्ज 'न पुणो ' त्तिय ॥ ४१ ॥