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र सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
प्रथम अध्ययन [10]
॥२०॥
An ascetic should not stand in a queue of other beggars. He should accept only prescribed food (and water) according to the ascetic-code. He should eat only a limited quantity of food at proper time as prescribed in scriptures. (32)
नाइदूरमणासन्ने, नन्नेसिं चक्खु-फासओ।
एगो चिट्ठेज्ज भत्तट्ठा, लंघिया तं नइक्कमे॥३३॥ यदि गृहस्थ के द्वार पर पहले से ही अन्य भिक्षु (याचक) खड़े हों, तो श्रमण न उनके अति समीप और न ही अधिक दूर और न ही दाता गृहस्थ की दृष्टि के सामने खड़ा रहे। उन याचकों को लाँघकर भी आगे नं जाय ॥ ३३॥
If other alms seekers are already standing at the gate of the donor householder, the ascetic should stand neither far nor near them. He should stand avoiding the householder's view and never rush ahead of those beggars. (33)
नाइउच्चे व नीए वा, नासन्ने नाइदूरओ।
फासुयं परकडं पिण्डं, पडिगाहेज्ज संजए॥३४॥ संयमी भिक्षु प्रासुक-अचित्त तथा अन्य के लिये निर्मित (परकृत) आहार विधिपूर्वक गृहस्थ से ले .. किन्तु वह भोजन भी अधिक ऊँचे या अधिक नीचे स्थान से लाया हुआ न हो तथा अति दूर और अधिक पास से दिया जाने पर भी नहीं लेवे॥ ३४॥
A restrained ascetic should accept, from a householder, only fault-free (prasuk) or lifeless (achit) food that was cooked for others. He should also ensure that it has neither been brought from a very high or a very low place nor from a very far or a very close place. If it is so he should not accept. (34)
अप्पपाणेऽप्पबीयंमि, पडिच्छन्नमि संवुडे।
समयं संजए भुंजे, जयं अपरिसाडियं ॥३५॥ __ संयत साधु प्राणि और बीजरहित, ऊपर से (छत आदि द्वारा) ढके हुये तथा दीवार से घिरे हुये (दीवार वाले) घर (मकान-स्थान) में सहधर्मी,साधुओं के साथ, भूमि पर न गिरता हुआ, (प्रासुक अचित्त) खाद्य पदार्थ का विवेकपूर्वक आहार करे॥ ३५॥
That restrained ascetic should eat that faultless food with other co-religionist ascetics carefully without spilling, at a house or a place with four walls and roof as well as free of living organism and seeds. (35)
सुकडे त्ति सुपक्के त्ति, सुच्छिन्ने सुहडे मडे।
सुणिट्ठिए सुलढे त्ति, सावज्जं वज्जए मुणी॥३६॥ आहार करते समय भी भिक्षु-'यह अच्छा बनाया है, पकाया है, काटा है, अच्छा प्रासुक बना है, बहुत ही बढ़िया स्वादिष्ट पदार्थ है', इत्यादि भोजन के विषय में सावद्यकारी वचन न बोले ॥ ३६॥
While eating that food an ascetic should not utter saavadya (sinful; liking for food being an obstacle on the spiritual path is a sinful act for an ascetic) words about the food, such as 'it is well-prepared, well cooked, nicely cut, fault-free, very tasty and delightful'. (36)