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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
गुरुजनों (आचार्य) का कोमल अथवा कठोर अनुशासन दुष्कृत का निवारण करने वाला होता है । बुद्धिमान शिष्य उसे अपने लिये लाभकारी मानता है, जबकि वही असाधु (बुद्धि - विवेकविकल) शिष्य के लिये द्वेष का हेतु बन जाता है ॥ २८ ॥
[9] प्रथम अध्ययन
Easy or stern discipline imposed by seniors (acharya) is for correcting and avoiding misconduct. A wise disciple considers it to be beneficial for him, whereas the same thing becomes a cause of antagonism to an unwise (devoid of wisdom and sagacity) disciple. (28)
हियं विगय-भया बुद्धा, फरुसं पि अणुसासणं । वेसं तं होइ मूढाणं, खन्ति सोहिकरं पयं ॥ २९ ॥
कठोर अनुशासन ( शिक्षाप्रद वचन) को भी निर्भीक और तत्त्वज्ञ शिष्य अपने लिये कल्याणकारी, शान्ति और आत्म-विशुद्धि करने वाला मानते हैं; जबकि वही शिक्षापद मूर्ख शिष्यों के लिये (गुरु के प्रति) द्वेष का कारण बन जाता है॥ २९॥
Fearless and learned disciple considers stern discipline (edifying words) to be the means of gaining his own welfare, forbearance and self-purification; whereas the same thing becomes a cause of antagonism to an unwise (devoid of wisdom and sagacity) disciple. (29)
आसणे उवचिट्ठेज्ज़ा, अणुच्चे अकुए थिरे । अप्पुट्ठाई निरुट्ठाई, निसीएज्जऽप्पकुक्कुए ॥ ३० ॥
शिष्य ऐसे आसन पर बैठे जो गुरु के आसन से नीचा हो, स्थिर हो, किसी प्रकार की आवाज न करता हो; उस आसन पर से भी शिष्य बार-बार न उठे, प्रयोजन होने पर भी कम उठे, चपलतारहित होकर स्थिरतापूर्वक बैठे ॥ ३० ॥
A disciple should take a seat that is lower than that of the guru and stable as well as soundless. He should also not rise often from that seat. Even when there is need he should get up only seldom. He should avoid fleetness and sit steadily. ( 30 )
काले निक्खमे भिक्खू, कालेण य पडिक्कमे । अकालं च विवज्जित्ता, काले कालं समायरे ॥ ३१ ॥
भिक्षु साधक नियत काल में भिक्षा के लिये जाये और नियत काल में ही प्रतिक्रमण करे। सभी कार्य नियत समय पर करे। अनियत काल में कोई भी प्रवृत्ति न करे ॥ ३१॥
An ascetic should move out to collect alms at proper time and should return within the prescribed time. He should perform all his duties and routine activities at prescribed time. None of his activities should be untimely. (31)
परिवाडीए न चिट्ठेज्जा, भिक्खू दत्तेसणं चरे ।
पडिरूवेण एसित्ता, मियं कालेण भक्खए ॥ ३२ ॥
भिक्षार्थी साधु अन्य जनों (याचकों) की पंक्ति (क्यू-Q) में खड़ा न रहे, मुनि-मर्यादा के अनुरूप गृहस्थ द्वारा दिया हुआ, एषणीय भोजन ग्रहण करे और शास्त्र में बताये गये समय में परिमित आहार करे ॥ ३२ ॥