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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
यदि विनीत शिष्य अपने किसी अशोभनीय व्यवहार से यह जाने कि गुरु अप्रसन्न हैं तो तुरन्त प्रीति भरे वचनों से उन्हें प्रसन्न करे और अंजलिबद्ध होकर 'मैं फिर ऐसा कभी नहीं करूँगा' – विनम्र शब्दों से ऐसा कहे ॥ ४१ ॥
प्रथम अध्ययन [ 12 ]
If a humble disciple perceives that his guru is displeased due to his uncouth behaviour then he should at once please the guru with gentle words and joining his palms convey with all humility-'I will never do that again'. ( 41 )
धम्मज्जियं च ववहारं, बुद्धेहायरियं सया । तमायरन्तो ववहारं, गरहं नाभिगच्छई ॥ ४२ ॥
धर्म (धर्मोपासना) से युक्त (अर्जित) और तत्त्वज्ञ आचार्यों द्वारा आचरित व्यवहार का आचरण करने वाले साधक की कहीं भी किसी भी व्यक्ति के द्वारा निन्दा नहीं की जाती ॥ ४२ ॥
An aspirant, who pursues the behaviour acquired by adhering to religious practices and practiced by enlightened acharyas, is nowhere slandered by anyone. (42)
मणोगयं वक्कगयं, जाणित्ताऽऽयरियस्स उ । तं परिगिज्झ वायाए, कम्मुणा उववायए ॥ ४३ ॥
गुरुजनों (आचार्य) के मनोगत और वचन के भावों को जानकर शिष्य वाणी से उन्हें स्वीकार करे और फिर आचरण में उतारे ॥ ४३ ॥
Anticipating the thoughts and words of seniors a disciple should express his assent in words and then put them in practice. (43)
वित्ते अचोइए निच्चं, खिप्पं हवइ सुचोइए । जहोवइट्ठ सुकयं, किच्चाइं कुव्वई सया ॥ ४४ ॥
विनीत शिष्य गुरु द्वारा बिना प्रेरणा किये ही सुप्रेरित के समान कार्य करने के लिये तत्पर रहता है और गुरु द्वारा बताये गये कार्य को तो शीघ्र ही भली भाँति सम्पन्न कर देता है ॥ ४४ ॥
Even without being inspired by the guru, a modest disciple is always ready to perform his duties as if inspired. As regards an assignment by the guru, he accomplishes it with alacrity and efficiency. (44)
नच्चा नमइ मेहावी, लोए कित्ती से जायए । हवई किच्चाणं सरणं, भूयाणं जगई जहा ॥ ४५ ॥
जो बुद्धिमान शिष्य विनय के स्वरूप को जानकर विनम्रता धारण कर लेता है, संसार में उसका यश स्वतः बढ़ता है। जिस प्रकार प्राणियों के लिये यह पृथ्वी आधारभूत है, उसी प्रकार वह धार्मिक
के लिये शरणभूत होता है ॥ ४५ ॥
The wise disciple, who becomes humble by gaining complete understanding of modesty, automatically enhances his fame. He becomes refuge for all religious people, just as the earth is for all living beings. (45)