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[359] अष्टाविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
१०. धर्म रुचि - जो जिनेन्द्र - कथित अस्तिकायधर्म, श्रुतधर्म और चारित्रधर्म पर श्रद्धान् करता है, वह निश्चय ही धर्मरुचि होता है, ऐसा जानना चाहिए ॥ २७ ॥
10. Interest in doctrine — Faith and belief in the doctrine of Astikaya (six entities), doctrine of scriptures and doctrine of right conduct as propagated by the Jina is known as interest in doctrine. (27)
परमत्थसंथवो वा, सुदिट्ठपरमत्थसेवणा वा वि ।
वावण्णकुदंसणवज्जणा य सम्मत्तसद्दहणा ॥ २८ ॥
(१) परमार्थ को जानना, उसका चिन्तन करना; (२) सुदृष्टिवान परमार्थ के तत्वद्रष्टाओं के गुणगान तथा उनकी सेवा करना; (३) सम्यक्त्वभ्रष्ट और कुदर्शनी ( मिथ्यात्वी) का वर्जन करना, उनसे दूर रहना, यह सम्यक्त्व का श्रद्धान् है। (इन तीन गुणों से सम्यक्त्वी पहचाना जा सकता है) ॥ २८ ॥
1. To know and ponder over the ultimate truth; 2. to praise and serve great sages endowed with knowledge of the ultimate truth and fundamentals; and 3. to defy and avoid unrighteous and heretics; these three are the signs of righteousness (samyaktva). (In other words the righteous can be recognized through these three virtues.) (28)
नत्थि चरित्तं सम्मत्तविहूणं, दंसणे उ भइयव्वं ।
सम्मत्त - चरित्ताई, जुगवं पुव्वं व सम्मत्तं ॥ २९॥
सम्यक्त्व के बिना चारित्र नहीं होता किन्तु सम्यक्त्व बिना चारित्र के हो सकता है। सम्यक्त्व और चारित्र एक साथ ( युगपत्) भी हो सकते हैं किन्तु चारित्र से पहले सम्यक्त्व होना अनिवार्य है ॥ २९ ॥
Right conduct cannot be without righteousness (samyaktva) but righteousness can come without right conduct. Righteousness and conduct may coexist but righteousness must always precede right conduct. ( 29 )
नादंसणिस्स नाणं, नाणेण विणा न हुन्ति चरणगुणा । अगुणिस्स नत्थि मोक्खो, नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं ॥ ३० ॥
सम्यक्त्व के बिना ज्ञान नहीं होता, ज्ञान के बिना चारित्र गुण नहीं होता, चारित्र गुण के बिना मोक्ष नहीं होता और मोक्ष के बिना निर्वाण (अनन्त चिदानन्द) नहीं होता ॥ ३० ॥
There is no (right-) knowledge without righteousness and without (right-) knowledge (right-) conduct is not possible. Without (right) conduct there is no liberation and without liberation the state of nirvana ( eternal bliss ) cannot be attained. ( 30 )
निस्संकिय निक्कंखिय, निव्वितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य । उववूह थिरीकरणे, वच्छल्ल पभावणे अट्ठ ॥ ३१ ॥
(१) निःशंका, (२) निष्कांक्षा, (३) निर्विचिकित्सा (धर्म फल के प्रति सन्देह न होना ), (४) अमूढदृष्टि, (५) उपबृंहण ( गुणीजनों की प्रशंसा से गुणों का वर्धन करना), (६) स्थिरीकरण, (७) वात्सल्य, और (८) प्रभावना - ये आठ सम्यक्त्व के अंग हैं ॥ ३१ ॥