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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
5. By seed (dissemination ) - As a drop of oil spreads over the surface of water, in the same way righteousness of one level too disseminates to all levels. This is known as interest by seed. (22)
अष्टाविंश अध्ययन [ 358]
सोइ अभिगमरुई, सुयनाणं जेण अत्थओ दिट्ठ । एक्कारस अंगाई, पइण्णगं दिट्ठिवाओ य ॥ २३ ॥
६. अभिगम रुचि-जिसने ११ अंग, प्रकीर्णक, दृष्टिवाद आदि श्रुतज्ञान अर्थसहित प्राप्त है, वह अभिगम रुचि है ॥ २३ ॥
6. Interest in comprehension-Comprehending the text and meaning of scriptures including the eleven Angas, Prakirnakas and Drishtivaada, is said to be interest in comprehension. (23)
दव्वाण सव्वभावा, सव्वपमाणेहिं जस्स उवलद्धा । सव्वाहि नयविहीहि य, वित्थाररुइ ति नायव्वो ॥ २४ ॥
७. विस्तार रुचि - सभी प्रमाणों और सभी नयविधियों से द्रव्यों के सभी भाव जिसे उपलब्धज्ञात हो गये हैं, उसे विस्तार रुचि जानना चाहिए ॥ २४ ॥
7. Interest in elaboration (enveloping the complete course ) — Acquiring the knowledge of all modes of all substances through all validations and stand points is called interest in elaboration. (24)
दंसण-नाण-चरित्ते, तव - विणए सच्च-समिइ - गुत्तीसु ।
जो किरियाभावरुई, सो खलु किरियारुई नाम ॥ २५ ॥
८. क्रिया रुचि - दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, विनय, सत्य, समिति तथा गुप्तियों में जो क्रियाभाव रुचि है, वह निश्चय ही क्रिया रुचि है ॥ २५ ॥
8. Interest in action (rituals and practices) - The active interest in pursuing rituals and practices related to right perception / faith, knowledge, conduct, austerities, modesty, truth, circumspections (samitis) and restraints (guptis) is said to be interest in action. (25)
अभिग्गहिय - कुदिट्ठी, संखेवरुइ त्ति होइ नायव्वो ।
अविसारओ पवयणे, अणभिग्गहिओ य सेसेसु ॥ २६ ॥
९. संक्षेप रुचि - जो वीतराग-प्रवचन में विशारद नहीं है और शेष अन्य मतों पर भी जिसकी गृहीत बुद्धि नहीं है, जिसने कुदृष्टि भी ग्रहण नहीं की है, वह संक्षेप रुचि होता है, ऐसा समझना चाहिए ॥ २६ ॥
9. Interest in brevity (of exposition ) - He who is not well-versed in sacred doctrines of the Jinas, is ignorant enough not to get acquainted with other creeds and has not acquired pervert bias, that one should be known as having been inspired by interest in brevity. (26)
जो अत्थिकायधम्मं, सुयधम्मं खलु चरित्तधम्मं च । सहइ जिणाभिहियं, सो धम्मरुइ त्ति नायव्वो ॥ २७ ॥