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तर, सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
अष्टाविंश अध्ययन [356 ]
जीव, अजीव, बन्ध (जीव और कर्मों का एक क्षेत्रावगाह), पुण्य (शुभत्व), पाप (अशुभत्व), आस्रव (शुभाशुभ कर्मबन्ध के हेतु राग-द्वेष आदि), संवर (आस्रवनिरोध), निर्जरा (पूर्वबद्ध कर्मों का एकदेश क्षय) और मोक्ष (कर्मों का सपूर्ण क्षय)-ये नौ तत्त्व हैं ॥ १४॥
Jiva (soul), ajiva (non-soul or matter), bandh (karmic-bondage), punya (merit), paap (demerit), asrava (karmic-inflow), samvar (blocking of karmic-inflow), nirjara (shedding of karmas), and moksha (liberation)-these are nine fundamentals. (14)
तहियाणं तु भावाणं, सब्भावे उवएसणं।
भावेणं सद्दहंतस्स, सम्मत्तं तं वियाहियं ॥१५॥ सम्यग्दर्शन ___ इन तथ्यभूत भावों के सद्भाव (अस्तित्व) के उपदेश-निरूपण में जो भावपूर्वक श्रद्धा होती है, उसे सम्यक्त्व अथवा सम्यग्दर्शन कहा गया है॥ १५ ॥
Righteousness
The devout belief in the sermon propagating the existence of these authenticated concepts is called righteousness or right perception/faith. (15) .
निसग्गुवएसरुई, आणारुई सुत्त-बीयरुइमेव।
अभिगम-वित्थाररुई, किरिया-संखेव-धम्मरुई॥१६॥ (रुचि की अपेक्षा वह सम्यक्त्व दस प्रकार का है) (१) निसर्ग रुचि, (२) उपदेश रुचि, (३) आज्ञा रुचि, (४) सूत्र रुचि, (५) बीज रुचि, (६) अभिगम रुचि, (७) विस्तार रुचि, (८) क्रिया रुचि, (९) संक्षेप रुचि, और (१०) धर्म रुचि ॥ १६ ॥
(Righteousness is of ten kinds in context of interest; in other words righteousness is gained through interest in the following-) 1. Natural or innate righteousness, 2. By interest in instruction, 3. By interest in command, 4. By interest in scriptures, 5. By seed (dissemination), 6. By interest in comprehension (of the meaning of sacred texts), 7. By interest in elaboration (enveloping the complete course), 8. By interest in action (rituals and practices), 9. By interest in brevity (of exposition), 10. By interest in doctrine. (16)
भूयत्थेणाहिगया, जीवाजीवा य पुण्णपावं च।
सहसम्मुइयासवसंवरो य, रोएइ उनिसग्गो॥१७॥ १. निसर्ग रुचि-किसी अन्य के उपदेश बिना स्वयं अपनी ही मति से हुए यथार्थ बोध से अवगत जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर आदि तत्वों के प्रति जो सहज-नैसर्गिक रुचि होती है, वह निसर्ग रुचि है॥ १७॥
1. Interest by nature-The spontaneous natural interest in fundamentals including jiva (soul), ajiva (non-soul or matter), punya (merit), paap (demerit), asrava (karmicinflow), samvar (blocking of karmic-inflow) known through one's own wisdom and true realization, without any preaching by others, is called interest by nature. (17)