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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
अष्टाविंश अध्ययन [ 354]
things appearing before the soul by means of five sense organs and the mind), 3. Avadhijnana (extrasensory perception of the physical dimension; something akin to clairvoyance), 4. Manahparyav-jnana (extrasensory perception and knowledge of thought process and thought-forms of other beings, something akin to telepathy), and 5. Kewal - jnana (ultimate knowledge or omniscience). (4)
एवं पंचविहं नाणं, दव्वाण य गुणाण य । पज्जवाणं च सव्वेसिं, नाणं नाणीहि देसियं ॥ ५ ॥
यह पाँच प्रकार का ज्ञान सर्वद्रव्य, गुण, पर्यायों का अवबोधक है - जानने वाला है - ऐसा ज्ञानियों ने कहा है ॥ ५ ॥
The wise have said that this five-fold knowledge is instrumental in revealing all attributes and modes of all substances. (5)
गुणाणमासओ दव्वं, एगदव्वस्सिया गुणा । लक्खणं पज्जवाणं तु, उभओ अस्सिया भवे ॥ ६॥
गुणों का आश्रय-आधार द्रव्य है । द्रव्य के आश्रित रहने वाले गुण हैं । द्रव्य और गुण-दोनों के आश्रित रहना, पर्यायों का लक्षण है ॥ ६ ॥
Substance is the basis of attributes. Attributes are dependant on substance. To be dependent on substance and attributes both is the nature or characteristic of modes. (6) धम्मो अहम्मो आगासं, कालो पुग्गल - जन्तवो । एस लोगो ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहिं ॥ ७ ॥
धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव-ये छह द्रव्य हैं, इनसे युक्त द्रव्यात्मक लोक है - ऐसा वरदर्शी - प्रत्यक्षदर्शी जिनवरों ने कहा है ॥ ७ ॥
Dharma (motion), Adharma ( inertia), Akaash (space), Kaal (time), Pudgal (matter) and Jiva (soul) — these are six substances (entities) that constitute the Lok ( occupied space or the universe), as said by the Jinas endowed with direct perception. (7)
धम्मो अहम्मो आगासं, दव्वं इक्किक्कमाहियं । अणन्ताणि य दव्वाणि, कालो पुग्गल - जन्तवो ॥ ८ ॥
धर्म, अधर्म और आकाश - ये तीनों द्रव्य संख्या में एक-एक हैं। काल, पुद्गल और जीव-ये तीनों द्रव्य संख्या में अनन्त - अनन्त हैं ॥ ८ ॥
Motion-entity (Dharmastikaya), Inertia-entity (Adharmastikaya) and Space-entity (Akaashastikaya), these three are singular in nature. Time-entity (Kaal), Matter-entity (Pudgalastikaya) and Soul - entity (Jivaastikaya), these three are plural in nature and each one infinite in number. (8)
गइलक्खणो उ धम्मो, अहम्मो ठाणलक्खणो । भायणं सव्वदव्वाणं, नहं ओगाहलक्खणं ॥ ९॥