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तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
षड्विंश अध्ययन [ 334]
ज्येष्ठ, आषाढ़ और श्रावण-इस प्रथम त्रिक में छह अंगुल; भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक-इस द्वितीय त्रिक में आठ अंगुल; मृगशिर, पौष और माघ-इस तृतीय त्रिक में दस अंगुल; फाल्गुन, चैत्र और वैशाख इस चतुर्थ त्रिक में आठ अंगुल की वृद्धि करने से प्रतिलेखन का पौरुषी समय होता है॥ १६॥
In the quarter of the year comprising the three months of Jyesth, Ashadh and Shravan the inspection and cleaning increases by six Anguls. It increases by eight Anguls in the following quarter of months of Bhaadrapad, Ashwin and Kartik; by ten Anguls in the following quarter of months of Mrigashir, Paush and Maagh; and by eight Anguls in the following quarter of the months of Falgun, Chaitra and Vaishakh. (16)
रत्तिं पि चउरो भागे, भिक्खू कुज्जा वियक्खणो।
तओ उत्तरगुणे कुज्जा, राइभाएसु चउसु वि॥१७॥ औत्सर्गिक रात्रि कृत्य
विचक्षण-मेधावी भिक्षु रात्रि के भी चार विभाग करे तथा उसके पश्चात् रात्रि के चारों ही विभागों में उत्तरगुणों की आराधना करे॥ १७ ॥ Renunciatory duties of the night
A prudent ascetic should divide the night in four parts and then devote himself to properly perform his subsidiary duties (uttar-gunas; other than mool-guna or the primary duty of observing the five great vows) during all the four parts. (17)
पढमं पोरिसि सज्झायं, बीयं झाणं झियायई।
तइयाए निद्दमोक्खं तु, चउत्थी भुज्जो वि सज्झायं ॥१८॥ प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान करे, तीसरे प्रहर में निद्रा ले और चौथे प्रहर में पुनः स्वाध्याय करे॥ १८॥
He should indulge in studies during the first paurushi (prahar or quarter of the day), meditation during the second, alms-seeking during the third and studies again during the fourth. (18)
जं नेइ जया रत्तिं, नक्खत्तं तंमि नहचउब्भाए।
संपत्ते विरमेज्जा, सज्झायं पओसकालम्मि॥१९॥ जो नक्षत्र जिस रात्रि की पूर्ति करता हो, वह जब आकाश के प्रथम चतुर्थ भाग में आ जाता है यानी रात्रि का प्रथम प्रहर समाप्त होता है तब वह प्रदोषकाल होता है, उस काल में स्वाध्याय से निवृत्त हो जाय ॥१९॥
When the nakshatra (constellation) that leads the night comes in the first quarter of the sky, which indicates the end of the first quarter of the night, it is called pradosh kaal (inauspicious period). He should conclude studies. (19)
तम्मेव य नक्खत्ते, गयणचउब्भागसावसेसंमि। वेरत्तियं पि कालं, पडिलेहित्ता मुणी कुज्जा॥२०॥