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________________ ना सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र पंचविंश अध्ययन [326] खवित्ता पुव्वकम्माइं, संजमेण तवेण य। जयघोस-विजयघोसा, सिद्धिं पत्ता अणुत्तरं ॥ ४५॥ -त्ति बेमि। जयघोष और विजयघोष-दोनों ने तप और संयम के द्वारा पूर्व संचित कर्मों को सर्वथा क्षय करके सिद्धि प्राप्त की॥ ४५ ॥ -ऐसा मैं कहता हूँ। Both Jayaghosh and Vijayaghosh shed all karmas accumulated in the past through austerities and restraint and attained the state of perfection (Siddhi) or liberation. (45) -So I say. विशेष स्पष्टीकरण गाथा १६-पूछे गये चार प्रश्नों के उत्तर इस प्रकार हैं (१) वेदों का मुख अर्थात् प्रधान तत्त्व सारभूत क्या है? इसका उत्तर जयघोष ने दिया है-अग्निहोत्र है। अग्निहोत्र का हवन आदि प्रचलित अर्थ तो विजयघोष जानता ही था। किन्तु वह जयघोष मुनि से मालूम करना चाहता था कि उनके मत में अग्निहोत्र क्या है? मुनि का अग्निहोत्र एक अध्यात्म भाव है, जिसमें तप, संयम, स्वाध्याय, धृति, सत्य और अहिंसा आदि दस प्रकार के मुनिधर्म का समावेश होता है। यह भाव अग्निहोत्र' ही जयघोष मनि ने विजयघोष को समझाया है। इसी अग्निहोत्र (आत्म-यज्ञ) में मन के विकार स्वाहा होते हैं। (२) दूसरा प्रश्न है-यज्ञ का मुख-उपाय (प्रवृत्ति हेतु) क्या है? इसके उत्तर में यज्ञ का मुख अर्थात् उपाय यज्ञार्थी बताया है। मुनि ने आत्म-यज्ञ के सन्दर्भ में अपने बहिर्मुख इन्द्रिय और मन को असंयम से हटाकर संयम में केन्द्रित करने वाले आत्म-साधक को ही सच्चा यज्ञार्थी (याज्ञक) बताया है। (३) तीसरा प्रश्न कालज्ञान से सम्बन्धित है। स्वाध्याय आदि समयोचित कर्त्तव्य के लिये काल का ज्ञान उस समय में आवश्यक था। और वह ज्ञान स्पष्टतः नक्षत्रों की गति-गणना से होता था। चन्द्र की हानि-वृद्धि से तिथियों का बोध अच्छी तरह हो जाता था। इस दृष्टि से ही मुनि ने उत्तर दिया है कि नक्षत्रों में मुख्य चन्द्रमा है। इस उत्तर की तुलना गीता (१०/२१) से की जा सकती है-"नक्षत्राणामहं शशी।" (४) चौथा प्रश्न था-धर्मों का मुख अर्थात् उपाय (आदि कारण) क्या है? धर्म का प्रकाश किससे हुआ? उत्तर में जयघोष मुनि ने कहा है-धर्मों का मुख (आदि कारण) काश्यप है। वर्तमान काल-चक्र में आदि काश्यप ऋषभदेव ही धर्म के आदि प्ररूपक, आदि उपदेष्टा हैं। सूत्रकृतांग (१/२/३/२) में तो स्पष्ट ही कहा है कि सब तीर्थंकर काश्यप के द्वारा प्ररूपित धर्म का ही अनुसरण करते रहे हैं-"कासवस्स अणुधम्मचारिणो।" (शान्त्याचार्य वृहद्वृत्ति)।
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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