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[325] पंचविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र ,
न कज्जं मज्झ भिक्खेण, खिप्पं निक्खमसू दिया।
मा भमिहिसि भयावट्टे, घोरे संसारसागरे॥४०॥ (जयघोष मुनि-) मुझे भिक्षा से कोई कार्य (प्रयोजन) नहीं है। लेकिन हे द्विज ! तुम शीघ्र ही अभिनिष्क्रमण करो यानी श्रमण दीक्षा स्वीकार करो; जिससे कि तुम्हें भव के आवौं वाले इस घोर संसार-सागर में भ्रमण न करना पड़े॥ ४०॥
(Ascetic Jayaghosh-) I am not concerned at all with alms. But you should soon renounce the world (get initiated as a shraman) so that you may not have to drift on this dreadful ocean of worldly existence abounding in eddies of rebirths. (40)
उवलेवो होइ भोगेसु, अभोगी नोवलिप्पई।
भोगी भमइ संसारे, अभोगी विप्पमुच्चई॥४१॥ भोगों से कर्मों का उपलेप होता है, अभोगी कर्मों से लिप्त नहीं होता। भोगी संसार में भ्रमण करता है, अभोगी उससे मुक्त हो जाता है॥ ४१ ।।
Mundane indulgences smear the soul with layers of karmas, but he who is non-indulgent is not soiled. The indulgent drifts along and the non-indulgent gets liberated. (41)
___ उल्लो सुक्को य दो छूढा, गोलया मट्टियामया।
दो वि आवडिया कुड्डे, जो उल्लो सो तत्थ लग्गई॥४२॥ गीले और सूखे मिट्टी के दो गोले फैंके गये। वे दोनों ही दीवार पर गिरे। गीला गोला वहीं - (दीवार पर) चिपक गया ॥ ४२ ॥
Two clods of clay, one wet and one dry, were thrown on a wall. Both hit the wall. The wet clod stuck to the wall. (42)
. एवं लग्गन्ति दुम्मेहा, जे नरा कामलालसा।
विरत्ता उ न लग्गन्ति, जहा सुक्को उ गोलओ॥४३॥ इसी तरह जो मनुष्य दुर्बुद्धि हैं और कामभोगों की लालसा से युक्त हैं वे विषयों में चिपक जाते हैं तथा जो कामभोगों से विरक्त हैं वे सूखे गोले के समान नहीं चिपकते॥४३॥
In the same way, the evil minded who are obsessed with mundane pleasures get stuck to the mundane and those who are detached from these pleasures do not stick, just like the dry clod of clay. (43)
एवं से विजयघोसे, जयघोसस्स अन्तिए।
अणगारस्स निक्खन्तो, धम्म सोच्चा अणुत्तरं ॥४४॥ इस प्रकार विजयघोष ब्राह्मण जयघोष अनगार से अनुत्तर धर्म को सुनकर दीक्षित हो गया॥४४॥
Thus listening to the supreme religion from ascetic Jayaghosh, Brahmin Vijayaghosh got initiated. (44)