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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पंचविंश अध्ययन [ 324]
The Enlightened ones (Arhats) have ordained these fundamentals. The aspirant who graduates by pursuing these becomes free from all karmic-bondage and we call him a Brahman. (34)
एवं गुणसमाउंत्ता, जे भवन्ति दिउत्तमा । ते समत्था उ उद्धत्तुं परं अप्पाणमेव य ॥ ३५ ॥
जो गुण-सम्पन्न द्विजोत्तम - उत्तम ब्राह्मण होते हैं, वे ही अपना और दूसरों का उद्धार करने में समर्थ होते हैं ॥ ३५ ॥
Only the best of the twice-born (Brahmins) endowed with virtues are capable of emancipating themselves as well as others. (35)
एवं तु संसए छिन्ने, विजयघोसे य माहणे । समुदाय तयं तं तु, जयघोसं महामुणिं ॥ ३६ ॥
इस तरह संशय दूर हो जाने पर विजयघोष ब्राह्मण ने महामुनि जयघोष के वचनों को सम्यक् रूप से स्वीकार किया ॥ ३६ ॥
This way when all doubts were removed, Brahmin Vijayaghosh thoroughly and sincerely accepted the words of ascetic Jayaghosh. (36)
तुट्ठेय विजयघोसे, इणमुदाहु कयंजली | माहणत्तं जहाभूयं, सुट्टु मे उवदंसियं ॥ ३७ ॥
संतुष्ट हुए विजयघोष ने हाथ जोड़कर इस प्रकार कहा- आपने मुझे यथार्थ ब्राह्मणत्व का बहुत ही सुन्दर उपदेश दिया है ॥ ३७ ॥
Contented Vijayaghosh submitted with joined palms-You have bestowed me with a highly lucid discourse about true Brahmanism. (37)
तुब्भे जड़या जन्नाणं, दुब्भे वेयविऊ विऊ ।
जो संगवि तुब्भे, तुभे धम्माण पारगा ॥ ३८ ॥
(विजयघोष ब्राह्मण - ) आप यज्ञों के यष्टा - यज्ञकर्त्ता हो, वेदों के ज्ञाता विद्वान् हो, आप ही ज्योतिष के अंगों के जानकार और धर्मों के पारगामी हो ॥ ३८ ॥
You are a true yajna priest, a scholar of Vedas, an expert of all limbs of astrology and a profound savant of religions. (38)
तुब्भे समत्था उद्धत्तुं परं अप्पाणमेव य ।
तमणुग्गहं करेहऽम्हं, भिक्खेण भिक्खु उत्तमा ॥ ३९ ॥
आप ही अपने और दूसरों का उद्धार करने में समर्थ हो। इसलिए हे उत्तम भिक्षु ! भिक्षा स्वीकार करके हम पर अनुग्रह करो ॥ ३९ ॥
You alone are capable of emancipating yourself and others. Therefore, O excellent ascetic! Kindly oblige us by accepting alms. (39)