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[323 ] पंचविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
One who does not get drawn to past contacts, kin and relatives once having abandoned them, we call him a Brahmin. (29)
पसुबन्धा सव्ववेया, सट्ठं च पावकम्मुणा।
न तं तायन्ति दुस्सीलं, कम्माणि बलवन्ति ह॥३०॥ पशुबन्ध (यज्ञ में आहुति देने के लिए पशुओं को बाँधना) के हेतु, सभी वेद और पापकर्मों से किये गये यज्ञ, उस दुःशील की रक्षा नहीं कर सकते-क्योंकि कर्म बलवान हैं॥ ३०॥
Binding of beasts to the sacrificial pole, all the Vedas and the sinful yajnas (ritual sacrifices) cannot protect that sinner because the karmas are very powerful. (30)
न वि मुण्डिएण समणो, न ओंकारेण बम्भणो।
न मुणी रण्णवासेणं, कुसचीरेण न तावसो॥३१॥ केवल सिर मुंडा लेने से कोई श्रमण नहीं होता, ॐ का जप करने से ब्राह्मण नहीं होता, वन में रहने से मुनि नहीं होता और कुश निर्मित चीवर (वस्त्र) धारण करने मात्र से कोई तपस्वी नहीं हो जाता ॥ ३१॥
One cannot become an ascetic (Shraman) only by tonsuring his head, a Brahmin by mere chanting of 'Om', a sage (muni) just by living in a forest or a hermit (taapas) simply by wearing dress made of grass. (31)
समयाए समणो होइ, बम्भचेरेण बम्भणो।
नाणेण य मुणी होइ, तवेण होइ तावसो॥३२॥ समभाव रखने से श्रमण होता है, ब्रह्मचर्य का पालन करने से ब्राह्मण होता है, ज्ञान से मुनि होता है और तप करने से तपस्वी होता है॥ ३२॥
One becomes an ascetic (Shraman) by equanimity, a Brahmin by celibacy (brahmacharya), a sage (muni) by knowledge and a hermit by penance. (32)
कम्मुणा बम्भणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ।
वइस्से कम्मुणा होइ, सुद्दो हवइ कम्मुणा॥३३॥ कर्म से ब्राह्मण होता है, कर्म से क्षत्रिय होता है, कर्म से वैश्य होता है और कर्म से ही शूद्र होता है॥३३॥
It is by his action (not by birth) that one becomes a Brahmin (learned or priestly class), a Kshatriya (warrior or ruling class), a Vaishya (business class) or Shudra (working class). (33)
एए पाउकरे बुद्धे, जेहिं होइ सिणायओ।
सव्वकम्मविनिम्मुक्कं, तं वयं बूम माहणं॥३४॥ इन तत्त्वों का प्ररूपण अर्हत् ने किया है। इनके द्वारा जो साधक स्नातक-पूर्ण होता है, सर्वकर्मों से मुक्त-विनिमुक्त होता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं॥ ३४ ॥