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ती सचित्र उत्तराध्ययन सत्र
पंचविंश अध्ययन [322 ]
One who does not indulge in uttering untruth out of anger, mirth, greed and fear; we call him a Brahmin. (24)
चित्तमन्तमचित्तं वा, अप्पं वा जई वा बहुं।
न गेण्हइ अदत्तं जे, तं वयं बूम माहणं ॥२५॥ जो सचित्त या अचित्त, थोड़ा अथवा बहुत कोई भी पदार्थ बिना दिये नहीं लेता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं॥ २५ ॥
One who does not take any thing without being given, may it be living or lifeless or more or less, we call him a Brahmin. (25)
दिव्व-माणुस-तेरिच्छं, जो न सेवइ मेहुणं।
मणसा काय-वक्केणं, तं वयं बूम माहणं॥२६॥ जो देव, मनुष्य, तिर्यञ्च सम्बन्धी मैथुन (अब्रह्मचर्य) का मन, वचन, काय से सेवन नहीं करता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं॥ २६ ॥
One who does not indulge in any sexual activity associated with divine beings, humans or animals through mind, speech and body, we call him a Brahmin. (26)
जहा पोमं जले जायं, नोवलिप्पइ वारिणा।
एवं अलित्तो कामेहि, तं वयं बूम माहणं ॥२७॥ जैसे जल में उत्पन्न हुआ कमल जल से लिप्त नहीं होता, उसी प्रकार जो कामभोगों से अलिप्त रहता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं ॥ २७॥
One who is not defiled by sensual pleasures, just like a lotus, though growing in water, is not wetted by it, we call him a Brahmin. (27)
अलोलुयं मुहाजीवी, अणगारं अकिंचणं।
असंसत्तं गिहत्थेसु, तं वयं बूम माहणं ॥२८॥ जो रस आदि में लोलुप नहीं है, स्वादविजयी है, मुधाजीवी-निर्दोष भिक्षा से जीवन-निर्वाह करता है, गृहत्यागी-अनगार है, अकिंचन है, गृहस्थों से अधिक परिचय नहीं रखता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं॥ २८॥
One who is not obsessed with gratifying taste buds and the like or a victor of tastebuds, subsists on faultless alms, a homeless ascetic, has no possessions and not closely acquainted with householders, we call him a Brahmin. (28)
जहित्ता पुव्वसंजोगं, नाइसंगे य बन्धवे।
जो न सज्जइ एएहि, तं वयं बूम माहणं॥२९॥ जो पूर्व संयोगों को, ज्ञातिजनों और बन्धुजनों को छोड़कर फिर उनमें आसक्त नहीं होता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं ॥ २९ ॥