________________
an सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पंचविंश अध्ययन [320]
जो अपना और दूसरों का उद्धार करने में समर्थ हैं, उन्हें भी बताइये। ये सब मेरे संशय हैं। हे साधु! मैं आपसे पूछता हूँ, आप बताइये॥ १५ ॥
Please also tell that who are capable of saving their own souls and those of others. All these are my doubts. O ascetic ! I beseech you to tell me. (15)
अग्गिहोत्तमुहा वेया, जन्नट्ठी वेयसां मुहं।
नक्खत्ताण मुहं चन्दो, धम्माणं कासवो मुहं॥१६॥ (जयघोष मुनि-) वेदों का मुख अग्निहोत्र (अग्निकारिका अध्यात्म) है, यज्ञों का मुख यज्ञार्थी (बहिर्मुख इन्द्रियों और मन को संयम में केन्द्रित करने वाला आत्मसाधक) है, नक्षत्रों का मुख चन्द्र है और धर्मों का मुख काश्यप (ऋषभदेव) है॥ १६ ॥
(Ascetic Jayaghosh-) The mouth (basic theme) of the Vedas is agnihotra (evoking the spiritual fire), the mouth (real performer) of yajnas (ritual offerings) is yajnarthi (the spiritual aspirant who focuses the extrovert sensual organs and mind into restraint), the mouth of Nakshatras (most important among asterisms) is the moon and the mouth (the source) of religions is Kaashyap (Rishabhadev). (16)
जहा चंदं गहाईया, चिट्ठन्ती पंजलीउडा।
वन्दमाणा नमसन्ता, उत्तमं मणहारिणो॥१७॥ जिस प्रकार चन्द्रमा के सम्मुख मनोहर ग्रहादि हाथ जोड़े हुए वन्दना-नमस्कार करते हुए रहते हैं उसी प्रकार देवता, इन्द्र आदि उत्तम पुरुष भगवान ऋषभदेव के सम्मुख रहते हैं॥ १७॥
All the resplendent stars and planets remain before the moon paying homage with joined palms; all great persons including gods and kings of gods remain before Bhagavan Rishabhadev in the same way. (17)
अजाणगा अन्नवाई, विज्जा माहणसंपया।
गूढा सज्झायतवसा, भासच्छन्ना इवऽग्गिणो॥१८॥ ब्राह्मण की संपदा विद्या है लेकिन यज्ञवादी इससे अनभिज्ञ हैं। वे बाहर में स्वाध्याय और तप से उसी प्रकार ढंके हुए हैं जिस प्रकार राख से अग्नि आच्छादित रहती है।॥ १८॥
The believers in yajna are unaware of the fact that the true wealth of a Brahmin is learning. They merely enshroud themselves with study and austerity as fire is covered by ash. (18)
जे लोए बम्भणो वुत्तो, अग्गी वा महिओ जहा।
सया कुसलसंदिट्ठ, तं वयं बूम माहणं ॥१९॥ जिसे संसार में कुशल पुरुषों ने ब्राह्मण कहा है तथा जो अग्नि के समान पूजित है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं॥ १९॥