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in सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पंचविंश अध्ययन [318]
Homeless ascetic Jayaghosh came to the yajna (ritual sacrifice) pavilion seeking alms for breaking his month long fast. (5)
समुवट्ठियं तहिं सन्तं, जायगो पडिसेहए।
न हु दाहामि ते भिक्खं, भिक्खू ! जायाहि अन्नओ॥६॥ (विजयघोष) आये हुए संत (जयघोष मुनि) को देखकर यज्ञकर्ता (विजयघोष) ने उसे निषेध किया और कहा-हे भिक्षु ! मैं तुम्हें भिक्षा नहीं दूंगा, तुम किसी अन्य स्थान पर जाकर याचना करो॥६॥ ___Seeing the approaching sage (ascetic Jayaghosh) the priest of the yajna (Vijayaghosh) stopped him and said-0 ascetic! I will not give you alms, go and beg at some other place. (6)
जे य वेयविऊ विप्पा, जन्नट्ठा य जे दिया।
जोइसंगविऊ जे य, जे य धम्माण पारगा॥७॥ जो वेदों के ज्ञाता विप्र हैं, यज्ञ करने वाले द्विज (ब्राह्मण) हैं, ज्योतिष के अंगों (वेदों में वर्णित ज्योतिषांग) के ज्ञाता हैं तथा जो धर्म (धर्मशास्त्रों) के पारगामी हैं- ॥ ७॥.
Those Brahmins who are well versed in Vedas, performers of yajna, scholars of astrology (as detailed in the Vedas) and experts of religion (scriptures)- (7) .
जे समत्था समुद्धत्तुं, परं अप्पाणमेव य।
तेसिं अन्नमिणं देयं, भो भिक्खू ! सव्वकामियं॥८॥ जो स्वयं अपनी और दूसरों की आत्मा का उद्धार करने में समर्थ हैं। हे भिक्षु ! यह सभी रसों से युक्त (सर्वकामिक) भोजन (अन्न) उन्हीं को देना है॥ ८॥ ____Who are capable of saving their own soul and those of others?o ascetic! This food, enriched with all condiments, is to be given only to them. (8)
सो एवं तत्थ पडिसिद्धो, जायगेण महामुणी।
न वि रुट्ठो न वि तुट्ठो, उत्तमट्ठ-गवेसओ॥९॥ इस प्रकार यज्ञकर्ता द्वारा प्रतिषेध-इन्कार किये जाने पर उत्तम अर्थ की खोज करने वाला महामुनि (जयघोष) न रुष्ट हुआ है न तुष्ट-प्रसन्न हुआ॥ ९॥
This way when the yajna priest refused the great sage, the seeker of the ultimate good, was neither annoyed nor pleased. (9)
नऽन्नद्रं पाणहेउं वा, न वि निव्वाहणाय वा।
तेसिं विमोक्खणट्ठाए, इमं वयणमब्बवी॥१०॥ मुनि ने इस प्रकार के वचन न तो अन्न (भोजन) के लिए, न पान (जल) के लिए और न जीवन-निर्वाह के लिए अपितु उन (यज्ञकर्ताओं) की मुक्ति (विमोक्षण) के लिए कहे॥१०॥