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[317] पंचविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पंचविंसइमं अज्झयणं : जन्नइज्ज
पंचविंश अध्ययन : यज्ञीय Chapter-25 : THE TRUE SACRIFICE
माहणकुलसंभूओ, आसि विप्पो महायसो।
जायाई जमजन्नंमि, जयघोसे -त्ति नामओ॥१॥ ब्राह्मण कुल में उत्पन्न जयघोष नाम का महायशस्वी विप्र था; जो हिंसक यज्ञ करने वाला यायाजी था॥१॥
Born in a Brahmin family there was a renowned Brahmin named Jayaghosh. He was a priest involved in performing violent yajnas (ritual sacrifices). (1)
इन्दियग्गामनिग्गाही, मग्गगामी महामुणी।
गामाणुगाम रीयन्ते, पत्तो वाराणसिं पुरिं॥२॥ वह इन्द्रियसमूह का निग्रह करने वाला, मार्गगामी महामुनि बन गया था। एक बार ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ, वाराणसी पहुँच गया ॥ २॥
Later he became a great ascetic, victor of the set of sense organs and follower of the right path. Wandering from one village to another, he once arrived in Varanasi city. (2)
वाराणसीए बहिया, उज्जाणमि मणोरमे।
फासुए सेज्जसंथारे, तत्थ वासमुवागए॥३॥ वाराणसी के बाह्य भाग में एक मनोरम उद्यान था। वहाँ प्रासुक शय्या, संस्तारक, पीठ, फलक, आसन आदि लेकर ठहर गया ॥३॥
In the outskirts of Varanasi city there was a beautiful garden. Collecting faultless bed, mattress, plank, seat and other ascetic-equipment, he stayed there. (3)
अह तेणेव कालेणं, पुरीए तत्थ माहणे।
विजयघोसे त्ति नामेण, जन्नं जयइ वेयवी॥४॥ उसी समय वाराणसी पुरी-नगरी में वेदों का ज्ञाता विजयघोष नामक ब्राह्मण यज्ञ कर रहा था॥४॥
During the same period in Varanasi city a Brahmin named Vijayaghosh, who was a scholar of Vedas, was performing a yajna. (4)
अह से तत्थ अणगारे, मासक्खमणपारणे।
विजयघोसस्स जन्नंमि, भिक्खस्सऽट्ठा उवट्ठिए॥५॥ एक मास की तपस्या के पारणे हेतु जयघोष अनगार, भिक्षा के लिए विजयघोष के यज्ञ में उपस्थित हुआ-पहुँचा ॥५॥