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[313] चतुर्विंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
२-वचनगुप्ति
सच्चा तहेव मोसा य, सच्चामोसा तहेव य। चउत्थी असच्चमोसा, वइगुत्ती चउव्विहा ॥२२॥ संरम्भ-समारम्भे, आरम्भे य तहेव य।
वयं पवत्तमाणं तु, नियतेज्ज जयं जई॥२३॥ (१) सत्या, (२) मृषा, (३) सत्यामृषा, (४) असत्यामृषा-वचनगुप्ति के ये चार प्रकार हैं॥ २२ ॥ यतनायुक्त यति संरम्भ, समारम्भ, आरम्भ में प्रवृत्त होते हुए वचन का निवर्तन-निग्रह करे ॥ २३ ॥
2. Vocal restraint (vachangupti) ___ 1. Truth, 2. untruth, 3. truth and untruth mixed, and 4. neither truth nor untruth (courteous and social behaviour)-these are four kinds of vocal restraint. (22)
A careful ascetic should prevent his speech conveying wish of misfortune for, thoughts of causing misery to and thoughts of causing destruction of other living beings. (23) ३-कायगुप्ति
ठाणे निसीयणे चेव, तहेव य तुयट्टणे। उल्लंघण-पल्लंघणे, इन्दियाण य जुंजणे॥२४॥ संरम्भ-समारम्भे, आरम्भम्मि तहेव य।
कायं पवत्तमाणं तु, नियतेज्ज जयं जई॥२५॥ खड़े रहने में, बैठने में, लेटने में या करवट बदलने में, गड्ढे आदि को लाँघने में, साधारण रूप से चलने में और इन्द्रियों के प्रयोग में- ॥ २४॥
संरम्भ, समारम्भ, आरम्भ में प्रवृत्त होती हुई काया (शरीर) को यतना सम्पन्न यति यतनापूर्वक निवर्तमान-निवृत्त करे॥ २५॥ 3. Physical restraint (kayagupti)
In acts of standing, sitting, lying, turning, jumping to cross a ditch, walking normally and application of sense organs- (24)
A careful ascetic should carefully prevent his body from activities directed at misfortune for, causing misery to and causing destruction of other living beings. (25)
एयाओ पंच समिईओ, चरणस्स य पवत्तणे।
गुत्ती नियत्तणे वुत्ता, असुभत्थेसु सव्वसो॥२६॥ ___ ये पाँच समितियाँ चारित्र में प्रवृत्ति के लिए और तीन गुप्तियाँ सभी अशुभ अर्थों-भावों-विषयों से सर्वथा निवृत्ति के लिए कही गई हैं॥ २६ ॥