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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
चतुर्विंश अध्ययन [314]
These five samitis have been prescribed for indulgence in right conduct and three guptis for complete prevention from indulgence in all ignoble and evil intentions and actions. (26)
एया पवयणमाया, जे सम्म आयरे मुणी। से खिप्पं सव्वसंसारा, विप्पमुच्चइ पण्डिए॥२७॥
-त्ति बेमि। ___ जो पण्डित (तत्त्ववेत्ता) मुनि इन प्रवचन-माताओं का सम्यक् रूप से आचरण करता है वह समस्त संसार से शीघ्र ही मुक्त हो जाता है॥ २७॥
-ऐसा मैं कहता हूँ। The sagacious ascetic, who immaculately practices these mothers of sermon, soon gets liberated from this worldly existence. (27)
--So I say.
विशेष स्पष्टीकरण गाथा ३-यहाँ पाँच समिति और तीन गुप्ति-इन आठों को ही समिति कहा है। प्रश्न है, ऐसा क्यों? शांत्याचार्य ने समाधान प्रस्तुत किया है कि गुप्तियाँ एकान्त निवृत्तिरूप ही नहीं, प्रवृत्तिरूप भी होती हैं, अत: प्रवृत्ति अंश की अपेक्षा से उन्हें भी समिति कह दिया है। समिति में नियमतः गुप्ति होती है, क्योंकि उसमें शुभं में प्रवृत्ति के साथ जो अशुभ से निवृत्तिरूप अंश है, वह नियमतः गुप्ति अंश ही है। गुप्ति में प्रवृत्तिप्रधान समिति की भजना है। (वृहद्वृत्ति)।
IMPORTANT NOTES
Verse 3—Here the five samitis (circumspections) and three guptis (restraints), all the eight have been called samitis. Question is, why so? Shantyacharya has explained that restraints are not exclusively negative, they have a positive component or nuance too. Therefore, due to their positive component they have been included in samitis. Samiti includes gupti as a rule because indulgence in noble essentially includes restrain from indulgence in ignoble. Similarly in restrain too circumspection is inherent.