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[309] चतुर्विंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
दव्वओ खेत्तओ चेव, कालओ भावओ तहा। जयणा चउव्विहा वुत्ता, तं मे कित्तयओ सुण॥६॥ दव्वओ चक्खुसा पेहे, जुगमित्तं च खेत्तओ। कालओ जाव रीएज्जा, उवउत्ते य भावओ॥७॥ इन्दियत्थे विवज्जित्ता, सज्झायं चेव पंचहा।
तम्मुत्ती तप्परक्कारे, उवउत्ते इरियं रिए॥८॥ संयत (संयमी साधक) आलम्बन से, काल से, मार्ग से और यतना से-इन चार कारणों से परिशुद्ध ईर्या समिति से विचरण करे॥४॥
ईर्या समिति का आलम्बन ज्ञान, दर्शन और चारित्र है। काल दिवस (दिन का समय) है। मार्ग उत्पथ का वर्जन है॥ ५॥ - द्रव्यतः क्षेत्रतः काल और भाव की अपेक्षा से यतना चार प्रकार की कही गई है। उसे मैं कहता हूँ, सुनो॥६॥
द्रव्य से-आँखों से देखे (देखकर चले)। क्षेत्र से-युगमात्र (चार हाथ प्रमाण) भूमि को देखे। काल से-जब तक चलता रहे तब तक देखे। भाव से-उपयोग सहित चले (गमन करे) ॥७॥
इन्द्रियों के पाँच प्रकार के विषय और पाँच प्रकार के स्वाध्याय को छोड़कर मात्र गमन क्रिया में ही तन्मय हो और उसी को प्रधानता देकर उपयोग सहित गमन करे॥८॥
1. Circumspection in movement (irya samiti)
Restrained aspirant should move with circumspection in movement purified in four respects-support or cause (aalamban), time (kaal), path (marg) and care (yatana). (4)
The cause is right knowledge, faith and conduct. The time is day-time. The path is to exclude wrong path. (5)
In context of substance, place, time and mind care is of four kinds. Listen to what I say about that. (6)
With regard to substance-should see with eyes (see carefully while moving). With regard to place-should see ground up to a distance of four cubits. With regard to timeshould see till the movement lasts. With regard to state of mind-walk with sincere attention. (7)
Giving no heed to objects of five senses as well as five types of self-study, he should move giving full importance and attention to the act of moving. (8)
२-भाषा समिति
कोहे माणे य मायाए, लोभे य उवउत्तया। हासे भए मोहरिए, विगहासु दहेव य॥९॥