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[305 ] त्रयोविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
विशेष स्पष्टीकरण
गाथा १२ - चातुर्याम - जैन परम्परा के अनुसार प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह रूप पाँच महाव्रतों का उपदेश दिया था। दूसरे अजित जिन से लेकर तेईसवें पार्श्व जिन तक चातुर्याम धर्म का उपदेश रहा। इसमें ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को "बहिद्धादाणाओ वेरमणं" - बहिस्ताद् आदानं विरमणं (बाह्य वस्तुओं के ग्रहण का त्याग) में समाहित कर दिया गया था।
प्रस्तुत अध्ययन में पार्श्वनाथ परम्परा के चार महाव्रतों को "याम" शब्द से और वर्धमान महावीर परम्परा के पाँच महाव्रतों को "शिक्षा" शब्द से सूचित किया है।
भगवान पार्श्वनाथ ने मैथुन को परिग्रह के अन्तर्गत माना था । स्त्री को परिगृहीत किये बिना मैथुन नहीं होगा । इसीलिये पत्नी के लिये "परिग्रह" शब्द भी प्रचलित रहा है।
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गाथा १३ – " अचेल " के दो अर्थ हैं बिल्कुल ही वस्त्र न रखना, अथवा अल्प मूल्य वाले साधारण श्वेत वस्त्र रखना। “अ” का अभाव अर्थ भी है, और अल्प भी । (वृ. वृ.)
IMPORTANT NOTES
Versé 12-Chaaturyaama-According to Jain tradition, first Tirthankar Bhagavan Rishbhadeva propagated five great vows Ahimsa, Truth, Non-stealing, Celibacy and Non-possession. From the second, Ajit Jina, to twenty-third, Parshva Jina, four vows were propagated. In this tradition celibacy and non-possession both were amalgamated in one, i.e., bahiddhaadaanaao veramanam (renouncement of accepting any outside thing).
In this chapter the four great vows of Parshvanaath's tradition have been presented as Yaam or dimension and five great vows of Bhagavan Mahavir's tradition as Shiksha or instruction.
Bhagavan Parshvanaath considered sex act within the ambit of possession (parigraha) because without possessing a woman one cannot copulate. For this reason the term parigraha was also in popular use for "wife" in those days.
Verse 13-There are two interpretations of the word "achela" - totally unclad and clad in few and ordinary clothes. The prefix "a" denotes both total absence and meagerness. (V.V.)