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________________ सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र चतुर्विंश अध्ययन [ 306 ] चौबीसवाँ अध्ययन : प्रवचन-माता पूर्वालोक प्रस्तुत अध्ययन का नाम प्रवचन - माता ( पवयण - माया) है। समवायांगसूत्र में इसका नाम ‘समिइओ' समितियाँ दिया गया है। मूल में पाँच समितियों और तीन गुप्तियों को सम्मिलित रूप से आठ समितियाँ कहा है। अतः समितियाँ नाम भी अभीष्ट अर्थ को द्योतित करता है । समिति-गुप्तियों को प्रवचन - माता कहने के दो कारण सम्भव हैं - (१) ऐसा माना जाता है कि समस्त प्रवचन (धर्मशासन) इन्हीं से उद्भूत हुआ है अथवा यह समस्त प्रवचन (द्वादशांग) का सार है। (२) समिति-गुप्तियाँ साधु के अहिंसा आदि महाव्रतों की माता के समान परिपालना- देखभाल करती हैं। माता की इच्छा यही रहती है कि उसका पुत्र सन्मार्ग पर चले, उन्मार्ग को छोड़े। वह पुत्र संरक्षण और चरित्र-निर्माण के लिए सतत प्रयत्नशील रहती है। इसी प्रकार ये आठों प्रवचन - माताएँ साधक को सम्यक् प्रवृत्ति की ओर बढ़ने की प्ररेणा देती हैं, उन्मार्ग पर जाने तथा दुष्प्रवृत्ति से रोकती हैं, उसके चारित्र धर्म का विकास करती हैं, शुभ में प्रवृत्ति और अशुभसे निवृत्ति कराती हैं। सम्यक् प्रवृत्ति समिति है और अशुभ से निवृत्ति गुप्ति है। संक्षेप में कहा जाय तो समिति प्रवृत्तिरूप है और गुप्ति निवृत्तिरूप है। समिति पाँच हैं - (१) ईर्या, (२) भाषा, (३) एषणा, (४) आदान-निक्षेपणा और (५) परिष्ठापनिका । चलने में, बोलने में, आहार- पानी तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की खोज तथा ग्रहण में, उपाधियों को उठाने-रखने में तथा त्याज्य वस्तुओं - मल-मूत्र आदि के विसर्जन में सदैव सावधानी, उपयोगयुक्तता, सम्यक् रूप से प्रवृत्ति करना समिति है । मन, वचन, काय को अशुभ प्रवृत्ति से रोकना गुप्ति है । मन, वचन, काय योग के सत्य, असत्य, सत्यामृषा और असत्यामृषा (व्यवहार) ये चार-चार भेद करके समझाया है कि साधक केवल सत्य और व्यवहार भाषा का प्रयोग करे; असत्य और सत्यामृषा भाषा न बोले । इसी प्रकार मन के चिन्तन और काय योग को भी नियंत्रित रखे । इन समिति-गुप्तियों का मापदण्ड अहिंसा है। इसीलिए साधक सावधकारी कोई भी प्रवृत्ति करे और न मन में ही ऐसा चिन्तन करे । इस प्रकार आठों प्रवचन- माताओं का सर्वांग पूर्ण चिन्तन इस अध्ययन में हुआ है और दर्शाया है कि इनकी सम्यक् परिपालना से साधक अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। प्रस्तुत अध्ययन में २७ गाथाएँ हैं।
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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