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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
त्रयोविंश अध्ययन [ 304]
एवं तु संसए छिन्ने, केसी घोरपरक्कमे । अभिवन्दित्ता सिरसा, गोयमं तु महायसं ॥ ८६ ॥
इस प्रकार सभी संशयों के नष्ट होने पर घोर पराक्रमी केशी ने महायशस्वी गौतम को शिर से वन्दना कर- सिर झुकाकर - ॥ ८६ ॥
Thus when all doubts were removed, unwaveringly resolute Keshi bowed down his head to pay homage to widely famed Gautam. (86)
भावओ।
पंचमहव्वयधम्मं, पडिवज्जइ पुरिमस्स पच्छिमंमी, मग्गे तत्थ सुहावहे ॥ ८७॥
प्रथम और अन्तिम जिनों द्वारा उपदेशित एवं सुखकारी पंचमहाव्रत रूप धर्म को भाव सहित स्वीकार किया ॥ ८७॥
He then accepted, with heartfelt devotion, the beatific religion of five-vows as propagated by the first and the last Jinas. ( 87 )
केसी गोयमओ निच्चं तम्मि आसि समागमे । सुय - सीलसमुक्करिसो, महत्थऽत्थविणिच्छओ ॥ ८८ ॥
तिन्दुक उद्यान में केशी और गौतम - दोनों के सतत समागम (मिलन) में श्रुत और शील का उत्कर्ष तथा महान् तत्त्वों का विनिश्चय हुआ ॥ ८८ ॥
In the continued meetings in exchanges of Keshi and Gautam in Tinduk garden scriptural knowledge and righteousness were brought to eminence and many great doctrines were affirmed. (88)
तोसिया परिसा सव्वा, सम्मग्गं समुवट्ठिया । संथुया ते पसीयन्तु भयवं केसिगोयमे ॥ ८९॥
—त्ति बेमि ।
सम्पूर्ण परिषद् प्रस्तुत धर्मचर्चा से सन्तुष्ट हुई और सन्मार्ग में समुद्यत हुई तथा सभी ने उन दोनों की स्तुति की कि केशीकुमार श्रमण और गणधर गौतम - दोनों हम पर प्रसन्न हों ॥ ८९ ॥
- ऐसा मैं कहता हूँ ।
The whole assembly was satisfied with this religious dialogue and primed itself to accept the right path. They eulogized them both-May the venerable Kumar-shraman Keshi and Ganadhar Gautam bless us with their favour. (89)
-So I say.