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[299 ] त्रयोविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
O Gautam! There are many unrighteous paths in this world, which lead living beings astray (away from the right path). Treading those paths why have you not gone astray ? (60)
जे य मग्गेण गच्छन्ति, जे य उम्मग्गपट्ठिया । ते सव्वे विझ्या मज्झं, तो न नस्सामहं मुणी ! ॥ ६१ ॥
( गौतम - ) जो सन्मार्ग पर चलते हैं और जो उन्मार्ग पर चलते हैं, उन सब को मैं जानता हूँ। इसी कारण हे मुने! मैं सन्मार्ग से नहीं भटकता हूँ ॥ ६१ ॥
(Gautam -) I know all those who move on right path or the wrong path. That is why, O sage! I do not go astray from the right path. (61)
मग्गे य इइ के वुत्ता ?, केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥ ६२ ॥
(केशी - ) मार्ग किसे कहा जाता है? केशी ने गौतम से कहा । केशी के यह पूछने पर गौतम ने इस प्रकार कहा- ॥ ६२ ॥
Keshi said to Gautam-What is said to be this path? Hearing these words of Keshi, Gautam replied – (62)
कुप्पवयण-पासण्डी, सव्वे उम्मग्गपट्ठिया । सम्मग्गं तु जिणक्खायं, एस मग्गे हि उत्तमे ॥ ६३ ॥
( गौतम - ) कुप्रवचन को मानने वाले सभी पाखंडी - व्रतधारी लोग उन्मार्ग पर प्रयाण करते हैं। सन्मार्ग तो जिनेन्द्र द्वारा कथित है और यही मार्ग उत्तम है ॥ ६३ ॥
(Gautam-) All the heretics who believe in ignoble sermon choose the wrong path. Right path is that propagated by Jinas and that, indeed, is the most exalted path. (63)
साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ! ॥ ६४॥
(केशी - ) गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संशय भी दूर कर दिया। मेरा एक और भी संशय है। उसके सम्बन्ध में मुझे कुछ कहो ॥ ६४ ॥
(Kumar-shraman Keshi - ) Gautam! You are endowed with excellent wisdom. You have removed my doubt. I have another doubt. Gautam! Please tell me about that also. (64)
पाणिणं ।
महाउदग - वेगेणं, बुज्झमाणाण सरणं गई पट्टा य, दीवं कं मन्नसी मुणी ? ॥ ६५ ॥
हे मुने ! महान् जल-प्रवाह के वेग में बहते - डूबते प्राणियों के लिए शरण, गति, प्रतिष्ठा और द्वीप तुम किसे मानते हो ? ॥ ६५ ॥