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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
त्रयोविंश अध्ययन [298]
पधावन्तं निगिण्हामि, सुयरस्सीसमाहियं ।
न मे गच्छइ उम्मग्गं, मग्गं व पडिवज्जई॥५६॥ (गौतम-) दौड़ते हुए घोड़े को मैं श्रुत रश्मि (श्रुतज्ञान की रस्सी-लगाम) से वश में रखता हूँ। अतः मेरे अधीन हुआ वह अश्व उन्मार्ग में नहीं जाता अपितु सन्मार्ग पर ही चलता है।। ५६ ॥
(Gautam-) I control this galloping horse with the rein of knowledge. Therefore this horse under my command does not carry me to the wrong path, instead, it moves on the right path only. (56)
अस्से य इइ के वुत्ते ?, केसी गोयममब्बवी।
केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी॥५७॥ (केशी-) अश्व किसे कहा जाता है? केशी ने गौतम से कहा-पूछा। केशी के यह पूछने पर गौतम ने इस प्रकार कहा- ॥ ५७॥
Keshi said to Gautam-What is said to be this horse? Hearing these words of Keshi, Gautam replied– (57)
मणो साहसिओ भीमो, दुट्ठस्सो परिधावई।
तं सम्म निगिण्हामि, धम्मसिक्खाए कन्थगं॥५८॥ (गौतम-) मन ही साहसिक, भयंकर और दुष्ट अश्व है जो चारों ओर इधर-उधर दौड़ता रहता है। उसका मैं धर्मशिक्षा द्वारा भली-भाँति निग्रह करता हूँ। अत: वह उत्तम जाति का कन्थक अश्व बन गया है॥५८॥
Mind is this daring, dreadful and rogue horse that keeps on racing in all directions at random. I control it through religious instructions. That is why it has become a well trained horse of the best breed, Kanthak. (58)
साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो।
अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा !॥ ५९॥ __ (केशी-) गौतम! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संशय भी मिटा दिया। मेरा एक और संशय है। उसके सम्बन्ध में भी मुझे कुछ कहें॥ ५९॥
(Kumar-shraman Keshi-) Gautam ! You are endowed with excellent wisdom. You have removed my doubt. I have another doubt. Gautam! Please tell me about that also. (59)
कुप्पहा बहवो लोए, जेहिं नासन्ति जंतवो।
अद्धाणे कह वट्टन्ते, तं न नस्ससि ? गोयमा !॥६०॥ हे गौतम! संसार में बहुत से कुमार्ग हैं, जिनके कारण जीव (सन्मार्ग से) भ्रष्ट हो जाते हैं, भटक जाते हैं। उस मार्ग पर चलते हुए तुम क्यों नहीं भटकते हो? ॥ ६० ॥