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[297 ] त्रयोविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
(गौतम-) महामेघ से उत्पन्न उत्तम जल लेकर मैं निरन्तर उन अग्नियों को सिंचित करता रहता हूँ। अत: सिंचित की हुई अग्नियाँ मुझे नहीं जलाती ॥५१॥
(Gautam-) Taking superfine water produced by gigantic clouds, I keep on sprinkling it on those fires, thus pacified by sprinkling those fires do not scald me. (51)
अग्गी य इइ के वुत्ता ? केसी गोयममब्बवी।
केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी॥५२॥ (केशी-) वे अग्नियाँ कौन-सी कही गई हैं? केशी ने गौतम से कहा। केशी के कहने (पूछने) पर गौतम ने इस प्रकार कहा- ॥५२॥
Keshi said to Gautam-What those fires are said to be? Hearing these words of Keshi, Gautam replied-(52) . कसाया अग्गिणो वुत्ता, सुय-सील-तवो जलं।
सुयधाराभिहया सन्ता, भिन्ना हु न डहन्ति मे॥५३॥ (गौतम-) कषायों (क्रोध, मान, माया और लोभ) को अग्नियाँ कहा गया है तथा श्रुत, शील और तप उत्तम जल है। श्रुत-शील-तप की जलधारा से बुझी हुई तथा नष्ट हुई अग्नियाँ मुझे नहीं जलाती हैं।। ५३ ॥ ___Passions (anger, conceit, deceit and greed) are said to be fires and scriptural knowledge, uprightness and austerities are said to be superfine water. Fires extinguished and destroyed by stream of the water of knowledge, uprightness and austerities fail to bum me. (53)
साहु गोयम! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो।
अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा !॥५४॥ (केशी-) हे गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संशय भी दूर कर दिया। मेरा एक और संशय है। उसके विषय में भी मुझे कुछ कहें॥५४॥
(Kumar-shraman Keshi-) Gautam! You are endowed with excellent wisdom. You have removed my doubt. I have another doubt. Gautam ! Please tell me about that also. (54)
अयं साहसिओ भीमो, दुट्ठस्सो परिधावई।
जंसि गोयम ! आरूढो, कहं तेण न हीरसि ? ॥५५॥ यह साहसिक, भयंकर और दुष्ट अश्व दौड़ रहा है। गौतम! तुम उस पर सवार हो। वह तुम्हें उन्मार्ग पर कैसे नहीं ले जाता? ॥ ५५ ॥
This daring, dreadful and rogue horse is galloping. Gautam! You are sitting on its back. Why does it not carry you to the wrong path? (55)