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ती सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
त्रयोविंश अध्ययन [296]
(गौतम-) मैंने उस लता को सर्वथा काटकर एवं मूल सहित उखाड़कर फेंक दिया है। अतः मैं विषफलों से बचा रहकर यथान्याय विचरण करता हूँ॥ ४६ ॥
(Gautam-) I have completely cut that creeper, rooted it out and thrown it away. As such, remaining safe from poisonous fruits, I move about righteously. (46)
लया य इइ का वुत्ता ?, केसी गोयममब्बवी।
केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी॥४७॥ (केशी-) केशी ने गौतम से पूछा-वह लता कौन-सी कही गई है? केशी के यह पूछने पर गौतम ने बताया- ॥४७॥
Keshi said to Gautam-What that creeper is said to be? Hearing these words of Keshi, Gautam replied- (47)
भवतण्हा लया वुत्ता, भीमा भीमफलोदया।
तमुद्धरित्तु जहानायं, विहरामि महामुणी !॥४८॥ (गौतम-) हे महामुनि ! भवतृष्णा ही भयंकर लता है, उसमें भयानक परिपाक वाले फल लगते हैं। उसे जड़ से उखाड़कर मैं न्याय-नीति से विचरण करता हूँ॥ ४८॥
O great ascetic! Eager desire of existence (life) is the name of that tendril which brings forth the dreadful fruits. Clipping that tendril from root pleasantly. (48)
साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो।
अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ! ॥४९॥ (केशी-) हे गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरे इस संशय का समाधान कर दिया। मेरा एक और भी संशय है, उसके सम्बन्ध में भी मुझे कहें॥ ४९॥
(Kumar-shraman Keshi-) Gautam! You are endowed with excellent wisdom. You have removed my doubt. I have another doubt. Gautam! Please tell me about that also. (49)
संपज्जलिया घोरा, अग्गी चिट्ठइ गोयमा !
जे डहन्ति सरीरत्था, कहं विज्झाविया तुमे? ॥५०॥ हे गौतम! घोर प्रचण्ड अग्नियाँ प्रज्वलित हो रही हैं जो शरीर में स्थित जीवों को जलाती हैं। तुमने उन अग्नियों को कैसे बुझाया? ॥ ५० ॥
Gautam! Monstrous fires are blazing and burning embodied beings. How did you extinguish those fires? (50)
महामेहप्पसूयाओ, गिज्झ वारि जलुत्तमं । सिंचामि सययं देहं, सित्ता नो व डहन्ति मे॥५१॥