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[295] त्रयोविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
ते पासे सव्वसो छित्ता निहन्तूण उवायओ । मुक्कपासो लहुब्भूओ, विहरामि अहं मुणी ! ॥ ४१ ॥
( गौतम - ) हे मुनिवर ! विशिष्ट उपाय से उन सब पाश बन्धनों को सर्व प्रकार से काटकर तथा नष्ट कर मैं पाशमुक्त और लघुभूत होकर विचरण करता हूँ ॥ ४१ ॥
(Gautam-) O sage! After cutting and destroying all those bonds through special measures, I wander light and free from snares. ( 41 )
पासा य इइ के वुत्ता ?, केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥ ४२ ॥
(केशी) केशी ने गौतम से पूछा - हे गौतम ! वे बन्धन कौन से हैं? केशी के पूछने पर गौतम ने इस प्रकार कहा- ॥ ४२ ॥
Keshi asked Gautam-O Gautam! What are those snares? Hearing these words of Keshi, Gautam replied- (42)
भयंकरा ।
रागद्दोसादओ तिव्वा, नेहपासा छिन्दित्तु जहानायं, विहरामि जहक्कमं ॥ ४३ ॥
( गौतम - ) तीव्र राग-द्वेष और स्नेह भयंकर पाश बन्धन हैं। उन्हें काटकर न्याय - नीतिपूर्वक मैं विचरण करता हूँ॥ ४३ ॥
Intense attachment-aversion and love are dreadful snares. Shattering them, I move about righteously. (43)
साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ! ॥ ४४॥
(केशी - ) गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है । तुमने मेरा यह संशय दूर कर दिया। मेरा एक और भी संशय है, उसके विषय में मुझे कहो - बताओ ॥ ४४ ॥
(Kumar-shraman Keshi - ) Gautam ! You are endowed with excellent wisdom. You have removed my doubt. I have another doubt. Gautam! Please tell me about that also. (44)
अन्तोहियय-संभूया, लया चिट्ठइ गोयमा ! फलेइ विसभक्खीणि, सा उ उद्धरिया कहं ? ॥ ४५ ॥
हे गौतम ! हृदय के भीतर उत्पन्न एक लता रहती है, वह विष के समान फल देती है। उस विषलता को तुमने कैसे उखाड़ा ? ॥ ४५ ॥
O Gautam! Within the heart a creeper grows and exists. It gives poisonous fruits. How did you uproot that creeper? (45)
तं लयं सव्वसो छित्ता, उद्धरित्ता समूलियं । विहरामि जहानायं, मुक्को मि विसभक्खणं ॥ ४६ ॥