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in सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
त्रयोविंश अध्ययन [294]
O Gautam! Suppose you stand amidst thousands of enemies and they are advancing to conquer you. How do you vanquish them? (35)
एगे जिए जिया पंच, पंच जिए जिया दस।
दसहा उ जिणित्ताणं, सव्वसत्तू जिणामहं॥३६॥ (गौतम-) एक को जीतने से पाँच जीत लिए गये और पाँच को जीतने से दस पर विजय प्राप्त हो गई। दसों को जीतकर मैंने सभी शत्रुओं को जीत लिया॥ ३६॥
(Gautam-) By defeating one, five have been conquered and by conquering five ten have been won. By winning ten, I vanquish all the foes. (36)
सत्तू य इइ के वुत्ते ?, केसी गोयममब्बवी।
तओ केसिं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी॥ ३७॥ (केशी) केशी ने गौतम से कहा-वे शत्रु कौन से कहे जाते हैं? केशी के यह कहने पर गौतम ने इस प्रकार कहा- ॥ ३७॥
Keshi said to Gautam-Whom do you call foes? Hearing these words of Keshi, Gautam replied-(37)
एगप्पा अजिए सत्तू, कसाया इन्दियाणि य।
ते जिणित्तु जहानायं, विहरामि अहं मुणी!॥३८॥ (गौतम-) हे मुने ! अविजित एक अपना आत्मा ही शत्रु है। चार कषाय और पाँच इन्द्रियाँ भी शत्रु हैं। इनको जीतकर मैं यथान्याय-नीतिपूर्वक विचरण करता हूँ॥ ३८॥
O sage! The first foe is one's own unconquered soul; (add to this) four passions (anger, conceit, deceit and greed) and five senses (touch, taste, smell, sight and hearing). that too are foes. Vanquishing all these (ten) I move about righteously. (38)
साहु गायेम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो।
अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा !॥३९॥ (केशी-) हे गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। मेरा यह संशय मिट गया लेकिन मेरा एक संशय और भी है। हे गौतम! मुझे उसके विषय में कहें-बतावें ॥ ३९ ॥
(Kumar-shraman Keshi-) Gautam! You are endowed with excellent wisdom. You have removed my doubt. I have another doubt. Gautam! Please tell me about that also. (39)
दीसन्ति बहवे लोए, पासबद्धा सरीरिणो।
मुक्कपासो लहुब्भूओ, कह तं विहरसी मुणी? ॥ ४०॥ इस लोक में बहुत से शरीरधारी जीव पाश से आबद्ध दिखाई देते हैं। हे मुने! तुम किस प्रकार पाशबन्धन में मुक्त और लघुभूत-हल्के होकर प्रतिबन्धरहित विचरण करते हो? ॥ ४० ॥
Many corporeal beings in this world are seen caught in a trap. O sage! How move about light and free from snares? (40)