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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
O prudent one! When both religions (doctrines ) pursue the same goal, why this difference? Why you have no misgivings about this duality of doctrine ? (30) केसिमेवं बुवाणं तु, गोयमो इणमब्बवी । विन्नाणेण समागम्म, धम्मसाहणमिच्छियं ॥ ३१ ॥
[293 ] त्रयोविंश अध्ययन
( गौतम गणधर ) केशी के यह कहने पर गौतम ने इस प्रकार कहा - विज्ञान (विशिष्ट प्रकार ज्ञान) से जानकर ही धर्म-साधनों की अनुज्ञा दी गई ॥ ३१ ॥
To these words of Keshi, Gautam replied-It is through specialized knowledge (vijnana) that the instruments of religion have been determined. ( 31 )
पच्चयत्थं च लोगस्स, नाणविहविगप्पणं । जत्तत्थं गहणत्थं च, लोगे लिंगप्पओयणं ॥ ३२ ॥
अनेक प्रकार के उपकरणों की परिकल्पना लोगों की प्रतीति के लिए है। संयम यात्रा के निर्वाह हेतु और 'मैं साधु हूँ' इस प्रकार का बोध रहने के लिए लिंग का प्रयोजन है ॥ ३२ ॥
The concept of variety of visible accessories is aimed at recognition by people. The purpose of distinguishing marks is their usefulness in facilitating the pursuit of ascetic discipline besides the constant refreshing of the awareness that 'I am an ascetic'. (32)
अह भवे पइन्ना उ, मोक्खसब्भूयसाहणे । नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं चेव निच्छए ॥ ३३॥
यथार्थतः (दोनों तीर्थंकरों की ) प्रतिज्ञा - सिद्धान्त एक ही है कि मोक्ष के सद्भूत निश्चित वास्तविक कारण तो ज्ञान- दर्शन - चारित्र ही हैं ॥ ३३ ॥
In fact, the basic principle (of both Tirthankars) is same and that is right knowledge, perception/faith and conduct are the true and proven causes of liberation. (33)
साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा !॥ ३४॥
( केशीकुमार श्रमण - ) हे गौतम! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संशय तो समाप्त कर दिया। अब मेरा एक संशय है। हे गौतम! उस विषय में भी मुझे बताएँ ॥ ३४ ॥
(Kumar-shraman Keshi-) Gautam! You are endowed with excellent wisdom. You have removed my doubt. I have another doubt. Gautam! Please tell me about that also. (34)
अणे गाणं सहस्साणं, मज्झे चिट्ठसि गोयमा ! तेय ते अहिगच्छन्ति, कहं ते निज्जिया तुमे ? ॥ ३५ ॥
गौतम ! तुम अनेक सहस्र शत्रुओं के बीच में खड़े हो और वे तुम्हें जीतने के लिए तुम्हारे सम्मुख आ रहे हैं। तुमने उन शत्रुओं को किस प्रकार विजित कर लिया है ? ॥ ३५ ॥