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[5] प्रथम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
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A discerning disciple should not get annoyed by strict discipline imposed by the guru (instructions and rebuke), should instead have forgiving attitude (forbearance). He should neither keep company of mean persons, nor should he mock and play around with them. (9)
मा य चण्डालियं कासी, बहुयं मा य आलवे ।
कालेण य अहिज्जित्ता, तओ झाएज्ज एगगो॥१०॥ शिष्य क्रोध के आवेश में आकर (चाण्डालिक कर्म) न असत्य बोले और न क्रूरतापूर्ण व्यवहार करे। अधिक न बोले। अध्ययन काल में अध्ययन करे और बाकी समय एकान्त में ध्यान करे ॥१०॥
Out of anger a disciple should not indulge in any despicable activity, neither should he tell lies nor indulge in cruel behaviour. He should talk less, should study at proper time and should spend remaining time in solitary meditation. (10)
आहच्च चण्डालियं कटु, न निण्हविज्ज कयाइ वि।
• कडं'कडे' त्ति भासेज्जा, अकडं 'नो कडे' त्ति य॥११॥ यदि क्रोध आदि कषाय के आवेश में शिष्य ने असत्य भाषण अथवा क्रूर व्यवहार कर भी लिया हो तो उसे छिपाये नहीं: गरु के समक्ष प्रगट कर दे। यदि किया है तो 'मैंने किया है-ऐसा कहे' और यदि नहीं किया है तो 'मैंने नहीं किया है-ऐसा कहे'॥ ११॥
If the disciple has resorted to falsehood or barbaric behaviour out of anger or passion, he should not conceal it but reveal before the guru. If he has done wrong, he should say-'I have done it'; if not, he should say, 'I have not done it'. (11)
मा गलियस्से व कसं, वयणमिच्छे पुणो पुणो।
कसं व दळुमाइण्णे, पावगं परिवज्जए॥१२॥ अनुशासनप्रिय समझदार शिष्य, अड़ियल घोड़े के समान, बार-बार गुरु-आदेश रूप वचनों के चाबुक की इच्छा न करे; अपितु सुशिक्षित उत्तम अश्व के समान गुरु के संकेत को देखकर ही पापकर्म का त्याग कर दे ॥ १२ ॥
Like a stubborn horse, a disciplined and wise disciple should not await whip-like command of the guru; he should, instead, abandon sinful activities simply on getting a hint from the guru, like a.well trained horse. (12)
अणासवा थूलवया कुसील, मिउंपि चण्डं पकरेंति सीसा।
चित्ताणुया लहु दक्खोववेया, पसायए ते हु दुरासयं पि॥१३॥ गुरु की आज्ञा को सुनी-अनसुनी करने वाले, अधिक बोलने वाले, कुत्सित अथवा दुष्ट आचरण करने वाले शिष्य कोमल स्वभावी गुरु को भी कठोर (चंड) बना देते हैं। (इसके विपरीत) गुरु-आज्ञापालक, अल्पभाषी, कार्यदक्ष शिष्य क्रोधी (चण्ड) गुरु को भी प्रसन्न तथा प्रशान्त कर लेते हैं ॥ १३ ॥
Disciples who are heedless, talkative and ill mannered disciples make even a gentle guru harsh (angry). (On the other hand) Obedient, reticent and proficient disciples and please and pacify even an angry (harsh) guru. (13)