________________
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
नापुट्ठो वागरे किंचि, पुट्ठो वा नालियं कोहं असच्चं कुव्वेज्जा, धारेज्जा पियमप्पियं ॥ १४ ॥
वए ।
बिना पूछे कुछ भी न बोले और पूछने पर सत्य ही बोले । यदि कभी क्रोध आ भी जाये तो उसे तुरन्त (निष्फल) शान्त कर ले तथा गुरु के प्रिय और अप्रिय वचनों को अपने लिये हितकारी शिक्षा समझकर धारण करे ॥ १४ ॥
A disciple should not speak without being asked to and when asked to he should speak truth only. If there is an occasion when he is angry, he should pacify the anger at once and accept harsh and pleasant words of the guru considering them to be a part of his beneficent education. (14)
अप्पा चेव दमेयव्वो, अप्पा हु खलु दुद्दमो।
अप्पा दन्तो सही होई, अस्सि लोए परत्थ य ॥ १५ ॥
प्रथम अध्ययन [ 6 ]
स्वयं अपनी (राग-द्वेषयुक्त) आत्मा का ही दमन करना चाहिये। उसी पर विजय प्राप्त करनी चाहिये। स्वयं की आत्मा पर विजय प्राप्त करना बहुत कठिन है। लेकिन जो अपनी आत्मा को जीत लेते हैं, वे इस लोक और परलोक दोनों लोकों में सुखी होते हैं ॥ १५ ॥
One should subdue and discipline his own soul (infected with attachment and aversion). It is one's own soul that should be conquered. Although to win over the self (soul) is a very difficult task, those who conquer their soul gain happiness in this world and the next (rebirth). (15)
वरं मे अप्पा दन्तो, संजमेण तवेण य । माहं परेहि दम्मन्तो, बन्धणेहि वहेहि य ॥ १६ ॥
( शिष्य विचार करे ) तप और संयम के द्वारा मैं स्वयं अपनी आत्मा का दमन कर लूँ, यही श्रेष्ठ है; अन्यथा वध और बन्धन द्वारा अन्य मुझ पर शासन करेंगे, यह अच्छा नहीं होगा ॥ १६ ॥
(A disciple should think) It is better for me to discipline my own soul through austerities and restraint, otherwise others will rule over me by threat of killing and bondage and that would not be good. (16)
पडिणीयं च बुद्धाणं, वाया अदुव कम्मुणा । आवी वा जइ वा रहस्से, नेव कुज्जा कयाइ वि ॥ १७ ॥
प्रबुद्ध गुरुजनों अथवा आचार्यों के समक्ष प्रगट में अथवा एकान्त में वचन किंवा शरीर से कभी भी उनके प्रतिकूल आचरण नहीं करना चाहिये ॥ १७ ॥
A disciple should never show discourtesy to wise seniors and acharyas (preceptors), in their presence or otherwise, neither vocally nor physically. (17)
न पक्खओ न पुरओ, नेव किच्चाण पिट्ठओ
न जुंजे ऊरुणा ऊरुं, सयणे नो पडिस्सुणे ॥ १८ ॥
(कृत्य) अर्चनीय-वन्दनीय आचार्य आदि गुरुजनों की दाहिनी अथवा बाईं ओर उनसे सटकर न बैठे; न आगे-पीछे ही सटकर बैठे, उनकी जाँघ से जाँघ भिड़ाकर भी न बैठे। अपनी शय्या पर लेटा या बैठा ही गुरु के आदेश को न सुने ॥ १८ ॥ (चित्र देखें)