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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
उसी समय धर्मतीर्थ के प्रवर्त्तक, जिन, भगवान वर्द्धमान; जो सम्पूर्ण लोक में पूजित और विश्रुत थे ॥ ५॥
त्रयोविंश अध्ययन [ 288]
During the same period there lived Bhagavan Vardhamaan (Mahavir), the founder of the religious ford and Jina, who was renowned and adored by all. (5)
तस्स लोगपईवस्स, आसि सीसे महायसे । भगवं गोयमे नामं, विज्जा - चरणपारगे ॥ ६ ॥
उन लोक-प्रदीप वर्द्धमान के शिष्य भगवान गौतम ज्ञान - चारित्र के पारगामी और महायशस्वी थे ॥ ६ ॥
Bhagavan Gautam, the disciple of the said lamp of wisdom, Bhagavan Vardhamaan, was also very famous and a great master of right knowledge and conduct. (6) बारसंगविऊ बुद्धे, सीस - संघ- समाउले । गामाणुगामं रीयन्ते, से वि सावत्थिमागए ॥ ७ ॥
बारह अंगों के ज्ञाता प्रबुद्ध गौतम भी अपने शिष्य संघ सहित ग्रामानुग्राम विहार करते हुए श्रावस्ती नगरी में आये ॥ ७ ॥
Enlightened Gautam, an expert of twelve Angas (the corpus of the twelve limbed Jain canon), also came to Shravasti city while wandering from one village to another with his disciples. ( 7 )
कोट्ठगं नाम उज्जाणं, तम्मी नयरमण्डले ।
फासुए सिज्जसंथारे, तत्थ वासमुवागए ॥ ८ ॥
नगरी के निकट कोष्ठक नाम का उद्यान था, वहाँ प्रासुक शय्या - संस्तारक आदि सुलभ थे, अतः वे वहाँ ठहर गये ॥ ८ ॥
Near that city there was a park named Koshthak. As faultless place of stay and bed were available, he stayed in that park. ( 8 )
केसीकुमार-समणे,
गोयमे य महायसे । उभओ वि तत्थ विहरिंसु, अल्लीणा सुसमाहिया ॥ ९ ॥
आत्मलीन (अल्लीणा) और सम्यक् समाधि से युक्त कुमारश्रमण केशी और महान् यशस्वी गौतम-दोनों ही वहाँ (नगरी में) विचरते थे ॥ ९॥
Kumar-shraman Keshi and most glorious Gautam both lived in the city engrossed in soul with perfect serenity. (9)
तवस्सिणं ।
उभओ सीससंघाणं, संजयाणं तत्थ चिन्ता समुप्पन्ना, गुणवन्ताण ताइणं - ॥१०॥
संयता, तपस्वी, गुणवान और छह काया के रक्षक दोनों ही शिष्य-संघों में यह चिन्तन समुत्पन्न हुआ - ॥ १०॥