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[287 ] त्रयोविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
तेविंसइमं अज्झयणं : केसिगोयमिज्जं त्रयोविंश अध्ययन :केशि-गौतमीय Chapter-23 : KESHI AND GAUTAM
जिणे पासे त्ति नामेण, अरहा लोगपूइओ।
संबुद्धप्पा य सव्वन्नू, धम्मतित्थयरे जिणे॥१॥ राग-द्वेष आदि आन्तरिक रिपुओं के विजेता, पार्श्व नाम के लोकपूजित अर्हन् जिन स्वतः सम्बुद्ध, सर्वज्ञ, वीतराग और धर्मतीर्थ के प्रवर्तक थे॥१॥
There was a self-enlightened (svayam-sambuddha) Jina named Parshva, who was conqueror of all inner enemies, revered by all, omniscient, absolutely detached and founder of the ford of religion. (1)
तस्स लोगपईवस्स, आसि सीसे महायसे ।
केसीकुमार-समणे, विज्जा-चरण-पारगे॥२॥ उन लोकप्रदीप भगवान पार्श्वनाथ के शिष्य केशीकुमार श्रमण ज्ञान और चारित्र (विज्जाचरण) के पारगामी थे॥२॥
Kumar-shraman Keshi, the disciple of the said lamp of wisdom, Bhagavan Parshvanaath, was very famous and a great master of right knowledge and conduct. (2)
ओहिनाण-सुए बुद्धे, सीससंघ-समाउले।
गामाणुगाम रीयन्ते, सावत्थिं नगरिमागए॥३॥ वे अवधिज्ञान और श्रुतज्ञान से प्रबुद्ध (पदार्थों के स्वरूप के ज्ञाता) थे। अपने शिष्य संघ के साथ विहार करते हुए वे श्रावस्ती नगरी में आये॥ ३॥
He was endowed with Avadhi-jnana (extrasensory perception of the physical dimension; something akin to clairvoyance) and Shrut-jnana (scriptural knowledge). While wandering from one village to another with a group of his disciples, he came to Shravasti city. (3)
तिन्दुयं नाम उज्जाणं, तम्मी नगरमण्डले।
फासुए सिज्जसंथारे, तत्थ वासमुवागए॥४॥ नगरी के समीप तिन्दुक नाम का उद्यान था। वहाँ प्रासुक (निर्दोष) शय्या-संस्तारक उपलब्ध था, अत: वहाँ ठहर गये॥४॥
Near that city there was a park named Tinduk. As faultless place of stay and bed were available, he stayed in that park. (4)
अह तेणेव कालेणं, धम्मत्थियरे जिणे। भगवं वद्धमाणो त्ति, सव्वलोगम्मि विस्सुए॥५॥