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[283 ] द्वाविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
- विशेष स्पष्टीकरण
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गाथा ५-लक्षण-प्रवचनसारोद्धार वृत्ति (पत्र ४१०-११) में बताया गया है कि "शरीर के साथ उत्पन्न होने वाले छत्र, चक्र, अंकुश आदि रेखाजन्य चिह्न लक्षण कहे जाते हैं। साधारण मनुष्यों के शरीर में ३२, बलदेव-वासुदेव के १०८ और चक्रवर्ती तथा तीर्थंकर के शरीर पर १००८ शुभ लक्षण होते हैं।"
गुरुजनों के नाम से पूर्व १०८ या १००८ श्री का प्रयोग इन्हीं लक्षणों का सूचक है।
गाथा ६-संहनन का अर्थ है-बन्धन-हड्डियों के बन्धन। शरीर के सन्धि अंगों की दोनों हड्डियाँ परस्पर आँटी लगाये हुए हों, उन पर तीसरी हड्डी का वेष्टन-लपेट हो और चौथी हड्डी की कील उन तीनों को भेद रही हो, इस प्रकार का वज्र जैसा सुदृढ़ अस्थिबन्धन "वज्र-ऋषभ-नाराच" संहनन है। संहनन के छह प्रकार हैं।
संस्थान-शरीर की आकृति को संस्थान कहते हैं। (प्रज्ञापना २३/२) - पालथी मारकर बैठने पर जिस व्यक्ति के चारों कोण सम हों, वह “समचतुरस्र" नामक सर्वश्रेष्ठ संस्थान है। संस्थान के छह प्रकार हैं। (प्रज्ञापना २३/२)
गाथा ९-कौतुक-मंगल-विवाह के पूर्व वर के ललाट पर मूशल का स्पर्श करवाना आदि कार्य कौतुक हैं। दही, अक्षत, दूध, चन्दन आदि द्रव्य मंगल कहलाते हैं। (वृ. वृ.)
दिव्य-युगल-प्राचीनकाल में अन्तरीय-नीचे पहनने के लिये धोती और उत्तरीय-ऊपर ओढ़ने के लिये चादर, ये दो ही वस्त्र पहने जाते थे। उसी का नाम दिव्य युगल है।
गाथा १०-गन्धहस्ती-सब हाथियों में श्रेष्ठ होता है। इसकी गन्ध से अन्य हाथी हतप्रभ हो जाते हैं, भयभीत होकर भाग खड़े होते हैं।
गाथा ११-समुद्रविजय, अक्षोभ्य, वसुदेव आदि दस भाई थे। उनके समूह को “दसार चक्र" कहते थे।
गाथा १३-अन्धक और वृष्णि दो भाई थे। वृष्णि अरिष्टनेमि के पितामह अर्थात् दादा होते थे-इनसे "वृष्णिकुल" का प्रवर्तन हुआ। दशवैकालिक आदि के अनुसार दोनों भाइयों के नाम से "अन्धक वृष्णिकुल" भी प्रसिद्ध था।