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in सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
द्वाविंश अध्ययन [282]
तू क्रोध, मान, माया, लोभ-इन कषायों को पूर्ण रूप से निग्रह करके तथा इन्द्रियों को वश में करके अपनी आत्मा को असंयम से हटाकर संयम में स्थिर (उवसंहरे) उपसंहार कर ॥ ४७ ॥
Abandoning all four passions-anger, conceit deceit and greed, and controlling the senses, shifting your soul from indiscipline submit it or employ it firmly to the pursuit of ascetic-discipline. (47)
तीसे सो वयणं सोच्चा, संजयाए सुभासियं।
अंकुसेण जहा नागो, धम्मे संपडिवाइओ॥४८॥ उस संयता राजीमती के सुभाषित वचनों को सुनकर रथनेमि सम्यक् प्रकार से धर्म में उसी तरह स्थिर हो गया जिस तरह हाथी अंकुश से वश में हो जाता है॥ ४८॥
Having heard these well-said words of restrained Raajimati, Rathanemi became steady in religion (restraint) as an elephant is steadied by a hook. (48)
मणगुत्तो वयगुत्तो, कायगुत्तो जिइन्दिओ।
सामण्णं निच्चलं फासे, जावज्जीवं दढव्वओ॥४९॥ वह (रथनेमि) मन, वचन, काया से गुप्त और जितेन्द्रिय हो गया। दृढ़व्रती बनकर जीवनभर निश्चल रूप से श्रामण्य का पालन करता रहा ॥ ४९ ।।
He (Rathanemi) became restrained in mind, speech and body; he also became a victor of senses. Being firm in observance of vows, he unwaveringly practiced asceticism all his life. (49)
उग्गं तवं चरित्ताणं, जाया दोणि वि केवली।
सव्वं कम्म खवित्ताणं, सिद्धि पत्ता अणुत्तरं॥५०॥ उग्र तप का आचरण करके दोनों (रथनेमि और राजीमती) ने ही कैवल्य प्राप्त किया और सम्पूर्ण कर्मों का क्षय करके अनुत्तर सिद्धगति को प्राप्त हुए॥५०॥
Practicing rigorous austerities they both (Raajimati and Rathanemi) attained omniscience and after destroying all karmas reached the ultimate state of liberation. (50)
एवं करेन्ति संबुद्धा, पण्डिया पवियक्खणा। विणियदृन्ति भोगेसु, जहा सो पुरिसोत्तमो॥५१॥
-त्ति बेमि। सम्बुद्ध, तत्त्ववेत्ता पण्डित और विचक्षण व्यक्ति ऐसा ही करते हैं। पुरुषों में उत्तम रथनेमि के समान वे भोगों से निवृत्त हो जाते हैं ॥ ५१॥ ।
-ऐसा मैं कहता हूँ। Enlightened, sagacious and unique individuals do like that. Like Rathanemi, the noble among man, they turn away from mundane indulgences. (51)
-Sol say.