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[275] द्वाविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
मत्तं च गन्धहत्थिं, वासुदेवस्स जेट्ठगं।
आरूढो सोहए अहियं, सिरे चूडामणि जहा॥१०॥ वासुदेव के सर्वश्रेष्ठ मत्त गंधहस्ती पर आरूढ़ हुए अरिष्टनेमि, मस्तक पर चूड़ामणि के समान बहुत शोभायमान हो रहे थे॥ १०॥
Riding the best and spirited king elephant (Gandhahasti) belonging to Vaasudeva, Arishtanemi looked beautiful like the jewel on a crown. (10)
अह ऊसिएण छत्तेण, चामराहि य सोहिए।
दसारचक्केण य सो, सव्वओ परिवारिओ॥११॥ दशार चक्र (दशों दशार्हो) से घिरे हुए (परिवृत्तः) अरिष्टनेमि ऊँचे छत्र और चामरों से शोभित थे॥११॥
Arishtanemi was graced by tall umbrellas and whisks (chaamar) and surrounded by Dasharhas (the royal Yadav brothers). (11)
चउरंगिणीए सेनाए, रइयाए जहक्कम।
तुरियाण सन्निनाएण, दिव्वेण गगणं फुसे ॥१२॥ यथाक्रम से चतुरंगिणी सेना सजाई गई थी तथा वाद्यों के दिव्य नाद-घोष से आकाश गूंज रहा था॥१२॥
The four limbed army was ready to march in rank and file and the sky resounded . with the divine sound of musical instruments. (12)
एयारिसीए इड्डीए, जुईए उत्तिमाए य।
नियगाओ भवणाओ, निज्जाओ वण्हिपुंगवो॥१३॥ इस प्रकार की उच्च कोटि की ऋद्धि (ठाठ-बाट) और द्युति (चमक-दमक, शान-शौकत) के साथ वृष्णिपुंगव (अरिष्टनेमि-इनका कुल वृष्णि था) अपने भवन से निकले ॥ १३ ॥
Thus, with such rich splendour and grandeur the best of Vrishnis (Arishtanemi) started from his palace. (13)
अह सो तत्थ निज्जन्तो, दिस्स पाणे भयदुए।
वाडेहिं पंजरेहिं च, सन्निरुद्धे सुदुक्खिए॥१४॥ वहाँ से निकलने के उपरान्त उन्होंने (अरिष्टनेमि ने) बाड़ों और पिंजड़ों में बन्द किये गये भयग्रस्त और अति दुःखी प्राणियों (पशु-पक्षियों) को देखा ॥ १४॥
On the way he saw birds and animals, encaged and rounded in yards, overcome by panic and misery. (14)
जीवियन्तं तु संपत्ते, मंसट्ठा भक्खियव्यए। पासेत्ता से महापन्ने, सारहिं इणमब्बवी-॥१५॥