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ता, सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
द्वाविंश अध्ययन [276]
वे प्राणी जीवन की चरम स्थिति-मृत्यु के निकट थे, माँस के लिए (माँसभक्षियों द्वारा) भक्षण किये जाने वाले थे। उन्हें इस स्थिति में देखकर महाप्रज्ञ अरिष्टनेमि ने अपने सारथी (महावत) से कहा- ॥१५॥
Those beings were almost at the end of their life and were destined to be consumed by meat-eaters. Finding them in this state, sagacious Arishtanemi asked his mahout- (15)
कस्स अट्ठा इमे पाणा, एए सव्वे सुहेसिणो।
वाडेहिं पंजरेहिं च, सन्निरुद्धा य अच्छहिं ? ॥१६॥ ये सभी सुख के इच्छुक प्राणी बाड़ों और पिंजड़ों में किस कारण रोके गये हैं ? ॥ १६ ॥
Why all these joy seeking beings (birds and animals) have been confined to enclosures and cages? (16)
अह सारही तओ भणइ, एए भद्दा उ पाणिणो।
तुझं विवाहकज्जमि, भोयावेउं बहुं जणं ॥१७॥ तब सारथी ने कहा-ये सभी भद्र प्राणी आपके विवाह कार्य में आये हुए बहुत से लोगों (माँसभोजियों) को खिलाने के लिये पकड़े गये हैं॥ १७॥
The mahout replied-All these gentle (innocent) beings have been caught to be offered, as food, to many flesh-eaters among the guests invited to attend your marriage ceremony. (17)
सोऊण तस्स वयणं, बहुपाणि-विणासणं।
चिन्तेइ से महापन्ने, साणुक्कोसे जिएहि उ-॥१८॥ बहुत से प्राणियों के विनाश सम्बन्धी सारथी के कथन को सुनकर महाप्रज्ञ अरिष्टनेमि अपने मन में इस प्रकार विचार करते हैं- ॥ १८॥ ।
Having heard these words of the mahout about the impending killing of numerous living beings, sagacious Arishtanemi thought- (18)
जइ मज्झ कारणा एए, हम्मिहिंति बहू जिया।
न मे एयं तु निस्सेसं, परलोगे भविस्सई ॥१९॥ यदि मेरे कारण इन बहुत से प्राणियों का वध किया जाता है तो यह मेरे लिए परलोक में श्रेयस्कर (उचित) नहीं होगा ॥ १९॥ ।
If so many living beings are killed for my sake it will not be to my advantage in the next world (future rebirth). (19)
सो कुण्डलाण जुयलं, सुत्तगं च महायसो।
आभरणाणि य सव्वाणि, सारहिस्स पणामए॥२०॥ इसलिए उन महायशस्वी ने कुण्डल युगल, सूत्रक तथा अन्य सभी आभूषण उतारकर सारथी को दे दिये ॥ २०॥