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an सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एकविंश अध्ययन [266]
like the roar of lion and even on hearing offending words he should not respond ungracefully. (14)
उवेहमाणो उ परिव्वएज्जा, पियमप्पियं सव्व तितिक्खएज्जा।
न सव्व सव्वत्थ ऽभिरोयएज्जा, न यावि पूयं गरहं च संजए॥१५॥ संयत साधु प्रतिकूलताओं की उपेक्षा करता हुआ प्रिय और अप्रिय (अनुकूलता-प्रतिकूलता)सबको सहन करे, सर्वत्र सबकी (मनोज्ञ वस्तुओं की) इच्छा न करे और न ही पूजा तथा गर्हा की अभिलाषा करे॥१५॥
Ignoring adversities, a restrained ascetic should always endure everything pleasant or unpleasant, should never desire everything (coveted) everywhere and never care for respect or blame. (15)
अणेगछन्दा इह माणवेहिं, जे भावओ संपगरेइ भिक्खू।
भयभेरवा तत्थ उइन्ति भीमा, दिव्वा मणुस्सा अदुवा तिरिच्छा ॥१६॥ मानवों के अनेक प्रकार के अभिप्राय (छन्द) होते हैं। भिक्षु अपने मन में उन्हें सम्यक् प्रकार से ग्रहण करे, जाने तथा देवों, मानवों, तिर्यंचों कृत भयोत्पादक घोर उपसर्गों को समभावपूर्वक सहन करे॥१६॥
Men are victims of innumerable desires and ambitions. An ascetic should-rightly know and understand them and should endure with equanimity the fearful and severe torments inflicted by divine beings, humans and animals. (16)
परीसहा दुव्विसहा अणेगे, सीयन्ति जत्था बहुकायरानरा।
ते तत्थ पत्ते न वहिज्ज भिक्खू, संगामसीसे इव नागराया॥१७॥ अनेक दुस्सह परीषह उपस्थित होने पर बहुत से कायर व्यक्ति खेद करते हैं किन्तु संग्राम में सबसे आगे रहने वाले हाथी के समान भिक्षु परीषहों से खेदित न हो ॥ १७॥
Many cowards are aggrieved when faced with many intolerable afflictions but like an elephant at the head of a battle, an ascetic should not be afraid while facing such afflictions. (17)
सीओसिणा दंसमसा य फासा, आयंका विविहा फुसन्ति देहं।
अकुक्कुओ तत्थ ऽहियासएज्जा, रयाई खेवेज्ज पुरेकडाइं॥१८॥ __ शीत, उष्ण, दंश-मशक, तृण-स्पर्श तथा अन्य अनेक प्रकार के आतंक जब भिक्षु के शरीर को स्पर्श करें-पीड़ित-कष्टित करें तब वह कुत्सित शब्द न करके उन्हें समभाव से सहे तथा पूर्वकृत कर्मों को क्षीण करे॥ १८॥
When cold, heat, mosquito-bite, pricks of straw and other variety of discomforts afflict the ascetic's body; he should desist from uncouth exclamations and endure them with equanimity in order to shed karmas accumulated in the past. (18)