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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
विंशति अध्ययन [ 260]
काऊण य
पयाहिणं ।
ऊससिय- रोमकूवो, अभिवन्दिऊण सिरसा, आइयाओ नराहिवो ॥ ५९ ॥
आनन्द से उल्लासित रोमकूप वाले राजा श्रेणिक ने मुनि की प्रदक्षिणा की, सिर झुकाकर वन्दना की और लौट गया ॥ ५९॥
Ecstatic king Shrenik circumambulated the ascetic, paid homage by bowing his head and returned to his palace. (59)
इयरो विगुणसमिद्धो, तिगुत्तिगुत्तो तिदण्डविरओ य । विहग इव विप्पमुक्को, विहरइ वसुहं विगयमोहो ॥ ६० ॥
- त्ति बेमि ।
साधु-गुणों से समृद्ध, तीन गुप्तियों से गुप्त, मन-वचन-काया के तीन दण्डों से विरत, पक्षी के समान सभी प्रतिबन्धों से विप्रमुक्त और मोहरहित होकर (अनाथी) मुनि पृथ्वी पर विचरण करने लगे ॥ ६० ॥ - ऐसा मैं कहता हूँ ।
(Then) Rich in ascetic-virtues, guarded by three kinds of restraint (gupti), abstaining from injury (to living beings) through three means ( mind, speech and body), the great ascetic (Anaathi), getting free from all restrictions and attachments like a bird, commenced his wanderings on the earth. (60)
-So I say.
विशेष स्पष्टीकरण
गाथा ७–प्राचीन युग में सर्वप्रथम देव एवं पूज्य गुरुजनों को उनके चारों ओर घूमकर प्रदक्षिणा की जाती थी। दाहिनी ओर से घूमना शुरू करते थे, जैसा कि कहा है- “ आयाहिण-पायाहिणं करेइ ।" प्रदक्षिणा के अनन्तर वन्दन किया जाता है। प्रस्तुत में वन्दन पहले है, प्रदक्षिणा बाद में है । अत: पहले वन्दना करके. फिर प्रदक्षिणा का उल्लेख है।
गाथा ९- अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति 'योग' है, और प्राप्त वस्तु का संरक्षण क्षेम है।
गाथा २३–‘चतुष्पाद-चिकित्सा' के चार अंग हैं- वैद्य, औषधि, रोगी और रोगी की शुश्रूषा करने वाले। (वृहद् वृत्ति)
IMPORTANT NOTES
Verse 7-In ancient times first of all circumambulation (pradakshina) was done by moving around deities and revered seniors. It was done going clockwise starting from the right (aayaahinampaayaahinam karei). Paying homage by bowing is done after pradakshina. But here bowing precedes pradakshina.
Verse 9-Getting what is not available is yoga and preservation of the obtained thing is kshema.
Verse 23-Chatushpaad chikitsa is four limbed treatment. The limbs are - physician (healer), medicine, patient and nurses. (V.V.)