________________
की सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
विंशति अध्ययन [254]
O king! She did not leave my side even for an instant, but even then she could not rid me of my pain, O king! That is my state of being without a protector. (30)
तओ हं एवमाहंसु, दुक्खमाहु पुणो पुणो।
वेयणा अणुभविउं जे, संसारम्मि अणन्तए॥३१॥ तब निराश होकर मैंने मन-ही-मन विचार किया कि इस अनन्त संसार में प्राणी को बार-बार दुःसह दुःख भोगना पड़ता है॥ ३१॥
Then loosing all hope I thought that in this endless cycle of rebirths (worldly existence) a living being has to suffer dreadful misery time and again. (31)
सइं च जइ मुच्चेज्जा, वेयणा विउला इओ।
खन्तो दन्तो निरारम्भो, पव्वए अणगारियं ॥ ३२॥ यदि एक बार मैं इस घोर वेदना से मुक्त हो जाऊँ तो क्षमावान, दमितेन्द्रिय, आरम्भ-त्यागी अनगार बन जाऊँगा ॥ ३२ ॥
For once if I am rid of this intense agony, then I will become a forgiving, sensesubdued, homeless ascetic. (32)
एवं च चिन्तइत्ताणं, पसुत्तो मि नराहिवा।
परियट्टन्तीए राईए, वेयणा मे खयं गया ॥ ३३॥ हे नरेश ! इस प्रकार का चिन्तन (दृढ़ संकल्प) करके मैं सो गया और बीतती हुई रात्रि के साथ मेरी वेदना भी समाप्त हो गई॥ ३३॥
O king! With such firm resolve, I fell asleep and with the passing night my pain also vanished. (33)
तओ कल्ले पभायम्मि, आपच्छित्ताण बन्धवे।
खन्तो, दन्तो, निरारम्भो., पव्वइओ ऽणगारियं ॥ ३४॥ तब सूर्योदय के साथ ही नीरोग होकर मैंने बन्धु-बान्धवों से पूछा-अनुमति ली और क्षमाशील, दमितेन्द्रिय, निरारम्भी अनगार बन गया॥ ३४॥
Then getting cured of my ailment with the rising sun, I took leave of my family members and relatives to become a forgiving, sense-subdued and sin-free homeless ascetic. (34)
ततो हं नाहो जाओ, अप्पणो य परस्स य।
सव्वेसिं चेव भूयाणं, तसाण थावराण य॥ ३५॥ तदनन्तर मैं अपना और दूसरों का, त्रस और स्थावर सभी प्राणियों का नाथ बन गया॥ ३५ ॥
After that I became the guardian angel (naath) for my own self (soul) and all othersall living beings, mobile and immobile. (35)
अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली। अप्पा कामदुहा घेणू, अप्पा मे नन्दणं वणं॥३६॥