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[251] विंशति अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र in
एरिसे सम्पयग्गम्मि, सव्वकामसमप्पिए।
कहं अणाहो भवइ ?, मा हु भन्ते ! मुसं वए॥१५॥ इस प्रकार की उत्तम संपदा के कारण मुझे सभी प्रकार के कामभोग सुलभ हैं; फिर मैं कैसे अनाथ हूँ? भंते! आप असत्य भाषण न करें॥ १५ ॥
With such great wealth (power) all pleasures and comforts are easily available to me. Even then how can I be without protection? Bhante! Please do not tell a lie. (15)
न तुमं जाणे अणाहस्स, अत्थं पोत्थं व पत्थिवा !
जहा अणाहो भवई, सणाहो वा नराहिवा? ॥१६॥ (श्रमण-) हे पृथ्वीनाथ! तुम अनाथ शब्द और उसके परमार्थ को नहीं जानते कि कोई व्यक्ति किस प्रकार अनाथ अथवा सनाथ होता है? ॥ १६ ॥
(Ascetic-) O lord of the land ! You do not understand the word anaath and its real meaning that how a person is with and without guardian or protector ? (16)
सुणेह मे महाराय!, अवक्खित्तेण चेयसा।
जहा अणाहो भवई, जहा मे य पवत्तियं ॥ १७॥ हे राजन्! एकाग्रचित्त होकर सुनो कि कोई व्यक्ति कैसे अनाथ होता है और मैंने किस आशय से इस शब्द का प्रयोग किया है ? ॥ १७॥
O king! Listen attentively that how a man becomes orphan or without protection, and with what intent I'used this word ? (17)
कोसम्बी नाम नयरी, पुराणपुरभेयणी।
तत्थ आसी पिया मज्झ, पभूयधणसंचओ॥१८॥ प्राचीन नगरों में अति सुन्दर कौशाम्बी नाम की नगरी थी। वहाँ मेरे पिता निवास करते थे। उनके पास प्रचुर मात्रा में धन का संचय (संग्रह) था॥ १८॥
Among the ancient cities there was a beautiful city named Kaushambi. My father lived there. He had accumulated wealth in abundance. (18)
पढमे वए महाराय !, अउला मे अच्छिवेयणा।
अहोत्था विउलो दाहो, सव्वंगेसु य पत्थिवा!॥१९॥ महाराज! प्रथम वय-युवावस्था में मेरी आँखों में अतुल-अत्यधिक तीव्र वेदना उत्पन्न हुई। हे राजन् ! उसके कारण मेरे सभी अंगों में तीव्र दाह होने लगा॥ १९ ॥
O king! In the prime of my life (youth), I was afflicted with severe pain in my eyes. That also caused high fever in my whole body. (19)
सत्थं जहा परमतिक्खं, सरीरविवरन्तरे । पवेसेज्ज अरी कुद्धो, एवं मे अच्छिवेयणा ॥२०॥