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________________ सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र विंशति अध्ययन [244] बीसवाँ अध्ययन : महानिर्ग्रन्थीय पूर्वालोक प्रस्तुत अध्ययन का नाम महानिर्ग्रन्थीय है। इसमें महानिर्ग्रन्थ की चर्या तथा मौलिक सिद्धान्तों का वर्णन हुआ है। ___इससे पहले अध्ययन मृगापुत्र में मृगचरिया-मुनि की उत्कृष्ट चर्या के विषय में संकेतात्मक निर्देश किया गया था और इस अध्ययन में उसका विशदीकरण है। प्रस्तुत अध्ययन का प्रारम्भ अनाथी मुनि और राजा श्रेणिक के वार्तालाप से होता है। एक बार मगधेश श्रेणिक राजगृह के बाह्य भाग में अवस्थित मण्डिकुक्षि उद्यान में प्रातः भ्रमण के लिये गये। वहाँ उन्होंने एक तरुण निर्ग्रन्थ को ध्यान-लीन देखा। उनके अनुपम सौन्दर्य, सुकुमारता, रूप-लावण्यता आदि को देखकर राजा चकित रह गया। ध्यान पूरा होने पर जब मुनि ने आँखें खोली तो राजा ने कहा "आप श्रमण कैसे बन गये? आपकी यह युवावस्था और कांतिमान शरीर तो भोग भोगने योग्य है। इस भोग की आयु में योग ग्रहण करने का क्या कारण है?" मुनि ने संक्षिप्त उत्तर दिया-"राजन् ! मैं अनाथ हूँ।" यद्यपि राजा श्रेणिक को मुनि के इस कथन पर विश्वास नहीं हुआ; क्योंकि मुनि की भव्य आकृति उनके संभ्रान्त कुल का परिचय दे रही थी; सोचा-'शायद, मुनि का कथन सत्य हो।' वह बोला-“मैं आपका नाथ बनता हूँ। आपको भोगों का आमन्त्रण देता हूँ। मैं आपके लिए सभी प्रकार की सुख-सुविधाएँ तथा भोग-सामग्री का प्रबन्धं करूँगा।" मुनि ने कहा-"राजन्! तुम स्वयं अनाथ हो, मेरे नाथ कैसे बनोगे?" राजा समझा कि मुनि ने उसे पहचाना नहीं है। उसने कहा-"आप मुझे नहीं जानते? मैं मगध सम्राट् श्रेणिक हूँ। मेरे पास चतुरंगिणी सेना, धन से भरा-पूरा कोश, विशाल साम्राज्य, अनेकों रानियाँ और हजारों दास-दासियाँ हैं। फिर भी आप मुझे अनाथ समझ रहे हैं। आपका यह कथन सत्य नहीं है?" मुनि ने कहा-"राजन् ! जिस अभिप्राय से मैंने 'अनाथ' शब्द कहा है, वह तुम नहीं समझे।" तब श्रेणिक की जिज्ञासा पर मुनि ने अपने जीवन में घटी घटना का उल्लेख करके समझाया राजन् ! मैं कौशाम्बी के इभ्य श्रेष्ठी का पुत्र हूँ। बड़े लाड़-प्यार से मेरा पालन-पोषण हुआ। युवा होने पर विवाह हो गया।
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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