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________________ सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र एक बार मेरी आँखों में तीव्र वेदना हुई। मेरे पिता ने पानी की तरह धन बहाया। वैद्य, चिकित्सक, मंत्र-तंत्रवादियों ने उपचार किया लेकिन मेरी वेदना कम न कर सके। मेरी माता- पत्नी आँसू बहाती रहती थीं। छोटे-बड़े भाई- बहन, मित्र, सुहृद भी मेरी सेवा में लगे रहते थे; किन्तु मेरी वेदना कम न हो सकी। [245] विंशति अध्ययन राजन् ! वह मेरी अनाथता थी । फिर एक रात मैंने स्वयं ही संकल्प किया- 'यदि मेरी अक्षिवेदना मिट जायेगी तो मैं श्रमण बन जाऊँगा ।' उस रात मुझे चैन से नींद आई। सुबह उठा तो वेदना भी मिट चुकी थी। मैं श्रमण बन गया। तदुपरान्त अनाथी मुनि ने कहा- केवल श्रमण वेश धारण करने से ही सनाथता नहीं आती। जो राग-द्वेष, कामभोगों की भावनाओं से ग्रसित होते हैं, वे श्रमण भी अनाथ ही होते हैं। सनाथ तो केवल शुद्धाचारी श्रमण ही होते हैं। राजा श्रेणिक ने सनाथ-अनाथ का यथार्थ अभिप्राय समझा और सम्यक्त्व ग्रहण किया। • सम्पूर्ण अध्ययन की भाषा ओजपूर्ण, रोचक और प्रेरक है। सूक्तियों और उपमाओं की प्रचुरता है। यह अध्ययन किसी भी व्यक्ति को अन्तर्मुखी और उसकी आत्मा को जागृत करने में सफल है। प्रस्तुत अध्ययन में ६० गाथाएँ हैं । 卐
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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