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तर, सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एकोनविंश अध्ययन [ 240]
एवं सो अम्मापियरो, अणुमाणित्ताण बहुविहं।
ममत्तं छिन्दई ताहे, महानागो व्व कंचुयं ॥ ८७॥ माता-पिता को अनेक प्रकार से समझाकर मृगापुत्र उसी प्रकार ममत्व को छोड़ देता है जैसे महानाग अपनी केंचुल को छोड़ देता है॥ ८७॥
Persuading his parents several ways Mrigaputra abandoned fondness just like a snake casts off its slough. (87)
इड्ढि वित्तं च मित्ते य, पुत्त-दारं च नायओ।
रेणुयं व पडे लग्गं, निद्भुणित्ताण निग्गओ॥ ८८॥ वस्त्र पर चिपकी हुई धूल के समान मृगापुत्र ने ऋद्धि, धन, मित्र, पुत्र, स्त्री और ज्ञातिजनों के प्रति ममत्व को झटक दिया-त्याग दिया और संयम यात्रा के लिए निकल गया ॥ ८८ ॥ ___Mrigaputra shook of all his fortune, wealth, friends, son, wife and kin, like dust sticking on a cloth and set out on the path of ascetic-discipline. (88)
पंचमहव्वयजुत्तो, पंचसमिओ तिगुत्तिगुत्तो . य।
सब्भिन्तर-बाहिरओ, तवोकम्मंसि उज्जुओ-॥८९॥ अब वह पाँच महाव्रतों से युक्त, पाँच समितियों से समित, तीन गुप्तियों से गुप्त, बाह्य और आभ्यन्तर तपों में तत्पर- ॥ ८९॥
Now he became observer of five great vows, cautious with five ascetic-precautions (samitis), restrained with three ascetic-restraints (guptis), dedicated to external and internal austerities-(89)
निम्ममो निरहंकारो, निस्संगो चत्तगारवो।
समो य सव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य॥९०॥ ममत्वरहित, निरहंकारी, आसक्ति से दूर, सुख-साता-ऋद्धि-इन तीन प्रकार के गौरवों का त्यागी, त्रस और स्थावर-सभी जीवों के प्रति समत्वभाव रखने वाला- ॥ ९० ॥
(Now he became-) Devoid of fondness, free of conceit, away from obsessions, renouncer of three kinds of glories (namely pleasure, comfort and fame), equanimous towards all beings, mobile and immobile- (90)
लाभालाभे सुहे दुक्खे, जीविए मरणे तहा।
समो निन्दा-पसंसासु, तहा माणवमाणओ॥९१॥ लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, जीवन-मरण, निन्दा-प्रशंसा तथा मान-अपमान-इन सभी स्थितियों में राग-द्वेष न करने वाला समभावी साधक- ॥ ९१॥
(Now he became-) Equanimous aspirant free of feelings of attachment and aversion towards gain-loss, pleasure-pain, life-death, blame-praise, honour-insult-(91)