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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
लता कुंजों और सरोवरों से अपनी भूख-प्यास को मिटाकर स्वतंत्र विचरण करता हुआ वह मृगों की निवास भूमि में चला जाता है ॥ ८२ ॥
[239] एकोनविंश अध्ययन
Pacifying its hunger and thirst from vegetation and pond, it roams freely and joins the herd in its natural habitat. (82)
एवं समुट्ठिओ भिक्खू, एवमेव अणेगओ । मिगचारियं चरित्ताणं, उड्ढं पक्कमई दिसं ॥ ८३ ॥
उसी प्रकार संयम समुत्थित भिक्षाजीवी साधु अनियतचारी होकर तथा मृगचर्या के सदृश आचरण करके ऊर्ध्व दिशा- मोक्ष की ओर गमन करता है ॥ ८३ ॥
In the same way an alms-seeking ascetic practising restraint becomes a random wanderer and behaving like a deer, moves higher and higher towards liberation. (83) जहा मिगे एग अणेगचारी, अणेगवासे धुवगोयरे य । एवं मुणी गोयरियं पविट्ठे, नो हीलए नो विय खिंसएज्जा ॥ ८४ ॥
जिस प्रकार मृग अकेला अनेक स्थानों पर विचरण करता है और अनेक स्थानों पर निवास करता है; उसी प्रकार गोचरी के लिए गृहस्थों के घर में प्रविष्ट हुआ मुनि न तो किसी की हीलना करता है और न ही किसी की निन्दा करता है ॥ ८४ ॥
As a deer roams and resides and takes food and water from many places; in the same way an ascetic on his begging tour, entering the houses of householders, neither insults nor speaks ill about anybody. (84)
मिगचारियं चरिस्सामि एवं पुत्ता ! जहासुरं ।
अम्मापिऊहिं अणुन्नाओ, जहाइ उवहिं तओ ॥ ८५ ॥
मृगापुत्र ने कहा—माताजी - पिताजी ! मैं मृग के समान चर्या करूँगा। यह सुनकर माता-पिता ने कहा - पुत्र ! जिसमें तुम्हें सुख हो, वैसा ही करो। इस तरह माता-पिता की आज्ञा प्राप्त करके मृगापुत्र उपधि का त्याग करता है ॥ ८५ ॥
I will follow a deer's way of life. Hearing this, the parents said-Son! Do as you please. Thus getting the permission of parents he abandoned all his possessions. (85) मियचारियं चरिस्सामि सव्वदुक्खविमोक्खणिं ।
भेहि अम्म ! ऽणुन्नाओ, गच्छ पुत्त ! जहासुहं ॥ ८६ ॥
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(मृगापुत्र - ) माताजी! आपकी आज्ञा पाकर मैं सभी दुःखों से मुक्त करने वाली मृगचर्या का आचरण करूँगा। इस पर माता ने कहा- हे पुत्र ! जैसे तुम्हें सुख हो, वैसा ही करो ॥ ८६ ॥
(Mrigaputra—) Mother ! With your permission I will follow deer's way of life that is capable of releasing me from all the miseries of the world. The mother said - Son! Do as you please. (86)