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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
As it is difficult to fill air in a bag made of cloth, in the same way it is very painful for a coward to follow ascetic praxis. ( 41 )
[231] एकोनविंश अध्ययन
जहा तुलाए तोलेडं, दुक्करं मन्दरो गिरी । ता निहुयं नीसंकं, दुक्करं समणत्तणं ॥ ४२ ॥
जैसे मंदरगिरि-मेरु पर्वत को तराजू से तोलना दुष्कर है, वैसे ही निश्चल और निःशंक होकर श्रमणधर्म का पालन दुष्कर है ॥ ४२ ॥
As to weigh Mandara Giri (Meru mountain) on a balance is a very arduous task, in the same way following ascetic code unwaveringly and doubtlessly is a very arduous task. (42)
जहा भुयाहिं तरिउं, दुक्करं रयणागरो । तहा अणुवसन्तेणं, दुक्करं दमसागरो ॥ ४३॥
जैसे रत्नाकर (समुद्र) को भुजाओं से तैरना दुष्कर है, वैसे ही अनुपशांत व्यक्ति के लिये संयम के सागर को पार करना दुष्कर है ॥ ४३ ॥
It is difficult to swim across the source of many gems, the ocean; in the same way it is very difficult to cross the sea of restraint for a person who has not pacified his mind. (43)
तुमं ।
भुंज माणुस्सए भोगे, पंचलक्खणए भुक्तभोगी तओ जाया !, पच्छा धम्मं चरिस्ससि ॥ ४४ ॥
हे पुत्र ! पहले तुम पाँच लक्षणों वाले (शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श) मनुष्य सम्बन्धी भोगों ' का उपभोग करो, उसके उपरान्त भुक्तभोगी बनकर श्रमणधर्म का आचरण करना ॥ ४४ ॥
O son! You first enjoy the human sensual pleasures with five attributes (touch, taste, smell, sight and hearing ). Later, having experienced them you may practise ascetic-conduct. (44)
तं बिंत Sम्मापियरो, एवमेयं जहा फुडं । इह लोए निष्पिवासस्स, नत्थि किंचि वि दुक्करं ॥ ४५ ॥
(मृगापुत्र - ) मृगापुत्र ने कहा- आपने श्रामण्य की दुष्करता के लिये जो कहा, वह सब सत्य है; लेकिन इस संसार से जिसकी तृष्णा शांत हो जाती है, उसके लिये कुछ भी दुष्कर नहीं है ॥ ४५ ॥
(Mrigaputra-) Mother and Father! What all you have said about difficulties of ascetic-conduct is true; but for one whose thirst for the mundane is quenched, nothing is difficult. (45)
चेव,
वेयणाओ
अणन्तसो ।
सारीर - माणसा
मए सोढाओ भीमाओ, असई दुक्खभयाणि य॥ ४६॥
मैंने शारीरिक और मानसिक वेदनाएँ अनेक बार भोगी हैं और दुःख एवं भयों का भी अनुभव किया है॥ ४६ ॥