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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
O son! The burden of virtues and codes of ascetic-praxis is as heavy as that of iron. Moreover, it has to be relentlessly carried all your life. To bear this burden all your life is extremely hard. (36)
एकोनविंश अध्ययन [ 230 ]
आगासे गंग सोउव्व, पडिसोओ व्व दुत्तरो । बाहाहिं सागरो चेव, तरियव्वो गुणोयही ॥ ३७॥
जिस प्रकार आकाश-गंगा का अनुस्रोत और जल-प्रवाह का प्रतिस्रोत दुस्तर है, सागर को भुजाओं से तैरकर पार करना कठिन है; उसी प्रकार गुणों के समुद्र संयम को भी पार करना अत्यधिक दुष्कर है ॥ ३७ ॥
It is a difficult to cross the celestial Ganges and so is to cross strong flow of a stream. It is almost impossible to cross an ocean swimming with limbs alone. In the same way to cross (tackle) the ocean of virtues that is ascetic-discipline is very difficult. (37)
वालुयाकवले चेव, निरस्साए उ संजमे ।
असिधारागमणं चेव, दुक्करं चरिडं तवो ॥ ३८ ॥
बालू रेत के कवल-कौर की तरह संयम निःस्वाद - नीरस है तथा तप का आचरण तो तलवार की धार पर चलने जैसा दुष्कर है ॥ ३८ ॥
Restraint is tasteless like a mouthful of sand and to practise penance is to move on the sharp edge of sword, such difficult it is. ( 38 )
अहीवेगन्तदिट्ठीए, चरित् पुत्त ! दुच्चरे । जवा लोहमया चेव, चावेयव्वा सुदुक्करं ॥ ३९॥
सर्प के समान एकाग्र दृष्टि से चारित्रधर्म पर चलना दुष्कर है। लोहे के जौ चबाना जैसे कठिन है उसी तरह चारित्र का पालन करना भी दुष्कर है ॥ ३९ ॥
It is tough to tread the path of religious conduct with eyes fixed snake-like on a target. Chewing iron bits is very difficult, so it is to rightly observe ascetic-conduct. ( 39 ) जहा अग्गिसिहा दित्ता, पाउं होइ सुदुक्करं । तहा दुक्करं करे जे, तारुण्णे समणत्तणं ॥ ४० ॥
जैसे प्रज्वलित अग्निशिखा का पान करना दुष्कर है; उसी प्रकार तरुणावस्था में श्रमणधर्म का पालन करना भी दुष्कर है ॥ ४० ॥
As it is very difficult to swallow blazing flame of burning fire, in the same way it is very hard to practise ascetic code in youth. (40)
जहा दुक्खं भरेडं जे होई वायरस कोत्थलो ।
तहा दुक्खं करे जे, कीवेणं समणत्तणं ॥ ४१ ॥
जैसे कपड़े के थैले को हवा से भरना कठिन होता है, वैसे ही कायर पुरुष के द्वारा श्रमणाचार का पालन दुःखप्रद होता है ॥ ४१ ॥