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[229 ] एकोनविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
अजित पवार
अशन-पान आदि चारों प्रकार के आहारों का रात्रि में त्याग करना तथा संनिधि और संचय का त्याग करना अतीव दुष्कर है॥ ३१॥
It is extremely difficult to avoid eating all four types of eatables including food and drink after sunset and also not to acquire and store (eatables). (31)
छुहा तण्हा य सीउण्हं, समसगवेयणा। अक्कोसा दुक्खसेज्जा य, तणफासा जल्लमेव य॥३२॥ तालणा तज्जणा चेव, . वह-बन्धपरीसहा।
दुक्खं भिक्खायरिया, जायणा य अलाभया॥३३॥ भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी, डांस-मच्छर की पीड़ा, आक्रोश वचन, दुःखप्रद शय्या, तृणस्पर्श, जल्लमैल ॥ ३२॥
ताड़ना-तर्जना, वध, बन्धन, भिक्षाचर्या, याचना, अलाभ आदि परीषहों को समभाव से सहन करना बहुत ही दुष्कर है॥ ३३ ॥
Hunger-thirst, cold-heat, pains caused by sting of wasp and mosquitoes, angry words, uncomfortable bed, pricking of grass, excreta and body-slime. (32)
Threats and insults, fatal attacks, bondage, alms-seeking, absence of gains and other such afflictions are very difficult to endure with equanimity. (33)
कावोया जा इमा वित्ती, केसलोओ य दारुणो।
दुक्खं बम्भवयं घोरं, धारेउं य महप्पणो॥३४॥ कापोतीवृत्ति-कबूतर की तरह दोषों से सशंक और सतर्क रहना, दारुण केश लोंच तथा घोर ब्रह्मचर्य धारण करना महान् आत्माओं के लिये भी अति दुष्कर है॥ ३४॥ ।
It is very tough even for great souls to be ever alert and cautious, like a pigeon, about faults and so are practices of painful hair-plucking and absolute celibacy. (34)
सुहोइओ तुमं पुत्ता !, सुकुमालो सुमज्जिओ।
न हु सी पभू तुमं पुत्ता !, सामण्णमणुपालिउं॥ ३५॥ पुत्र! तू अभी सुख भोगने योग्य है, सुकुमार है, सुमज्जित-साफ-सुथरा रहता है। अत: अभी तू श्रमणधर्म का पालन करने के लिए सक्षम नहीं है॥ ३५ ॥
Son! At present you are of the age fit to enjoy pleasures and comforts, you are delicate and you remain well groomed. As such you are not capable of observing the ascetic code. (35)
जावज्जीवमविस्सामो, गुणाणं तु महाभरो।
गुरुओ लोहभारो व्व, जो पुत्ता ! होई दुव्वहो ॥ ३६॥ हे पुत्र! साधुचर्या के नियमों-गुणों का भार तो लोहे के समान भारी है, जिसे जीवनभर बिना विश्राम लिए उठाना है, यह कार्य बहुत ही दुर्वह है, इसे जीवनभर वहन करना अत्यधिक कठिन है॥ ३६॥