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तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एकोनविंश अध्ययन [226]
रोगों और व्याधियों के घर तथा जरा और मरण से ग्रसित इस असार मानव-शरीर में मुझे एक क्षण भी सुख प्राप्त नहीं हो रहा है॥ १५ ॥
Abode of sickness and diseases, maligned by old age and death, this human body fails to make me happy even for an instant. (15)
जम्मं दुक्खं जरा दुक्खं, रोगा य मरणाणि य।
अहो दुक्खो हु संसारो, जत्थ कीसन्ति जन्तवो॥१६॥ जन्म दुःख है, वृद्धता दुःख है, रोग और मरण का दुःख है। यह सम्पूर्ण संसार ही दुःखमय है, जहाँ जीव क्लेश ही पाते हैं॥१६॥
Birth is misery, old age is sorrow and so are disease and death. In fact this whole world is full of miseries where the souls suffer distress. (16)
खेत्तं वत्थु हिरण्णं च, पुत्त-दारं च बन्धवा।
चाइत्ताणं इमं देहं, गन्तव्वमवसस्स मे॥१७॥ क्षेत्र-खुली भूमि, वास्तु-मकान, स्वर्ण, पुत्र, स्त्री तथा बन्धुजन और इस शरीर को भी छोड़कर एक दिन मुझे यहाँ से लाचार होकर चला जाना है॥ १७ ॥
Abandoning the fields, buildings, gold, son, wife, kin and even this body, I have to helplessly go from here. (17)
___ जहा किम्पागफलाणं, परिणामो न सुन्दरो।
एवं भुत्ताण भोगाणं, परिणामो न सुन्दरो॥१८॥ जिस प्रकार किम्पाक फल-विषफल का परिणाम सुन्दर नहीं होता, उसी प्रकार भोगे हुए भोगों का परिणाम भी सुन्दर नहीं होता ॥ १८॥
As the consequences of consuming Kimpaak-fruit (poisonous fruit) are obnoxious so are the consequences of rejoiced pleasures. (18)
अद्धाणं जो महन्तं तु, अपाहेओ पवज्जई।
गच्छन्तो सो दुही होई, छुहा-तण्हाए पीडिओ॥१९॥ जो व्यक्ति बिना पाथेय लिए लम्बे मार्ग पर चल देता है, वह मार्ग में चलते हुए भूख-प्यास से पीड़ित होकर कष्ट पाता है॥ १९ ॥
A person, who starts on a long journey without taking provisions with him, suffers agonies of hunger and thirst on the way. (19)
एवं धम्मं अकाऊणं, जो गच्छइ परं भवं।
गच्छन्तो सो दुही होइ, वाहीरोगेहिं पीडिओ॥२०॥ इसी तरह जो व्यक्ति धर्म का आचरण किये बिना ही परलोक को प्रस्थान कर देता है, वह व्याधि और रोगों से पीड़ित होकर दुःखी होता है॥ २० ॥